भोपाल की जागरूक जनता ने 27 हज़ार से अधिक पेड़ों को बचाने में कामयाबी पाई है। इसके लिए ‘चिपको आंदोलन’ जैसा विरोध प्रदर्शन के अंदाज़ में काम करने पर भी विचार किया गया।
दरअसल इन लोगों को इस बात का खतरा था कि शहर में वीवीआईपी बंगलों के लिए जगह बनाने के लिए इन पेड़ों को काट दिया जाएगा।
भोपाल में बनने वाली वीवीआईपी बंगलों के लिए 27 हज़ार पेड़ों का अस्तित्व दांव पर लगा था। पर्यावरण कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में निर्णय लिया। इसके साथ ही मध्य प्रदेश सरकार ने मंत्रियों, विधायकों और नौकरशाहों के लिए नए बंगले बनाने संबंधी प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
मध्य प्रदेश के नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर इसकी जानकारी साझा की।
भोपाल में पर्यावरण संरक्षक बीते दस दिनों से मध्य प्रदेश हाउसिंग बोर्ड द्वारा शहर के सबसे हरित क्षेत्रों में से एक शिवाजी नगर और तुलसी नगर में पेड़ों को काटकर विधायकों और नौकरशाहों के लिए बंगले बनाने की योजना के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। इनमे नागरिक, छात्र और हरित कार्यकर्ता सभी ने मिलकर हिस्सा लिया।
महिलाओं और एक भाजपा विधायक सहित कई लोगों ने 14 जून को पेड़ों की पूजा की और उनसे चिपककर उनकी रक्षा करने की शपथ ली। इन लोगों के अनुसार यदि सरकार कोई कदम नहीं उठाती है तो यह लोग चिपको आंदोलन जैसा व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू करने पर विचार कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश आवास एवं नगरीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई का कहना है कि पेड़ों को तत्काल कुछ नहीं होगा। आगे उन्होंने कहा कि यह शहरी विकास मंत्री के समक्ष हाउसिंग बोर्ड द्वारा प्रस्तुत की गई अवधारणा थी। अभी तक सरकार के समक्ष कोई मंजूरी या अंतिम प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने बताया कि सरकार पेड़ों की सुरक्षा के प्रति पूरी तरह संवेदनशील है और पेड़ों को काटने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
ऐसा ही एक अभियान उस समय भी चलाया गया था जब हरित क्षेत्र का यही हिस्सा स्मार्ट सिटी परियोजना के लिए चुना गया था, लेकिन जनता के विरोध के बाद इसे टीटी नगर में स्थानांतरित कर दिया गया था।
गौरतलब है कि 1970 के दशक में उत्तराखंड (जो उस समय उत्तर प्रदेश में था) में शुरू किया गया चिपको आन्दोलन एक ऐसा आंदोलन था जिसमें लोग द्वारा पेड़ों को काटे जाने से रोकने के लिए उनके तने से चिपक जाते थे। किसानो ने अंगूर के वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए इस आंदोलन का सहारा लिया था। किसान राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परम्परागत अधिकार जता रहे थे।