सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार यानि कि 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को राम मंदिर के हक में सुनाया। फैसले में कहा गया कि राम मंदिर विवादित स्थल पर बनेगा और मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में पांच एकड़ जमीन अलग से दी जाएगी।
न्यूज़ स्टेट पर छपी खबर के अनुसार, साथ ही कोर्ट ने कहा कि विवादित 02.77 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के अधीन रहेगी। वहीं केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर बनाने के लिए तीन महीने में एक ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया गया है।
कोर्ट के फैसले के बाद अब मस्जिद निर्माण के लिए जगह की तलाश की कवायद तेज हो गई है। जिसके लिए अयोध्या की 14 कोसी परिक्रमा क्षेत्र से बाहर सदर तहसील के पूरा विकास खंड अन्तर्गत शहनवां ग्रामसभा का नाम आगे आया है।
इसके साथ ही राजस्व विभाग ने सोहावल बीकापुर और सदर तहसील क्षेत्र में भी जमीन की तलाश शुरू कर दी है।
9th November 2019, a momentous date for all Indians.
The paths of divinity were paved for Sikhs with the opening of Kartarpur Corridor, for Muslims with a 5 acre land for Masjid & for Hindus with the clearance for building a grand Ram Mandir at Ram Janmbhoomi. 😊🙏🏻 pic.twitter.com/ArNshTIYdp
— Dr. Satya Pal Singh (Modi Ka Parivar) (@dr_satyapal) November 10, 2019
बताया जा रहा है कि शहनवां ग्रामसभा में बाबर के सिपहसालार मीरबाकी के क्रब होने का दावा किया जाता रहा है। इस गांव के निवासी शिया बिरादरी के रज्जब अली व उनके बेटे मोहम्मद असगर को बाबरी मस्जिद का मुतवल्ली कहा गया।
इसी परिवार को ब्रिटिश हुकूमत की ओर से 302 रुपये छह पाई की धनराशि मस्जिद के रखरखाव के लिए दी जाती थी। सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के दावे में इसका जिक्र भी किया गया।
वहीं कहा जा रहा है कि पूर्व मुतवल्ली के वारिसान आज भी इसी गांव में रह रहे हैं। इन वारिसान की ओर से भी मस्जिद के निर्माण के लिए अपनी जमीन दिए जाने की घोषणा की जा चुकी है।
इसके साथ ही बता दें कि सन् 1990-91 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल में हिन्दू-मुस्लिम पक्ष की वार्ता के दौरान मस्जिद के लिए विहिप की ओर से ही शहनवां गांव में जमीन दिए जाने का प्रस्ताव किया गया था।