एक शोध में पता चला है कि प्लास्टिक के कण कुछ फसलों के पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को रोक देते हैं जिससे पौधे को मिट्टी से पोषक तत्व नहीं मिल पाता और पौधे मर जाते हैं।
चीन के नानजिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हुआन झोंग के नेतृत्व में दो साल के अध्ययन से दिल दहला देने वाला नतीजा सामने आया है। इस नतीजे से खुलासा हुआ है कि प्लास्टिक के कण गेहूं, चावल, मक्का आदि पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को अवरुद्ध कर देते हैं और उन्हें मिट्टी से पोषक तत्व प्राप्त करने से रोकते हैं, जिससे पौधे मर जाते हैं।
इन देशों के लिए यह खबर चेतावनी भरी है कि यहाँ आबादी बढ़ रही है, जबकि विभिन्न कारणों से कृषि उत्पादन घट रहा है। ऐसे में भावी पीढ़ियों को भूख के जैसी समस्या से बचाने के लिए प्लास्टिक पर पाबन्दी लगाना आवश्यक हो गया है।
इस व्यवधान के कारण इन फसलों की वैश्विक उपज में 4 से 14 प्रतिशत की कमी आई है। यही नहीं इस प्रक्रिया के चलते इसमें और भी कमी आने की संभावना है। इस कमी का कारण यह है कि चीन, भारत और पाकिस्तान के खेतों में मानवीय गतिविधियों के कारण प्लास्टिक कणों की मात्रा में वृद्धि जारी है।
अध्ययन के आधार पर गार्जियन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में शोधकर्ताओं का कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण संभावित रूप से 2040 तक अतिरिक्त 40 करोड़ लोगों को भुखमरी के खतरे में डाल सकता है।
अध्ययन से पता चलता है कि माइक्रोप्लास्टिक्स के यह कण पौधों को कई तरह से सूरज की रोशनी का उपयोग करने से रोकते हैं और मिट्टी को नुकसान पहुंचाने से लेकर जहरीले रसायनों को ले जाते हैं। ये कण माउंट एवरेस्ट की चोटी से लेकर महासागरों की गहराई में पहुंच पाए गए हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि माइक्रोप्लास्टिक के कारण होने वाली वार्षिक फसल हानि हाल के दशकों में जलवायु संकट के कारण होने वाली हानि के समान ही हो सकती है।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएओ यानी खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि महासागरों से कहीं अधिक मात्रा में प्लास्टिक कृषि भूमि में मिली हुई है। दुनियाभर में यदि खेती में प्लास्टिक का उपयोग इसी तरह बढ़ता रहा, तो वर्ष 2018 के 6.1 मिलियन टन से 50 फीसद बढ़कर यह वर्ष 2030 तक 9.5 मिलियन टन पहुंच जाएगा।
निष्कर्ष चिंताजनक हैं, लेकिन विशेषज्ञों ने डाटा की पुष्टि के लिए और अध्ययनों की आवश्यकता पर जोर दिया है।