महिलाओं की स्थिति पर यूएन आयोग के 69वें सत्र के दौरान विश्व भर से महिलाएँ व नेता न्यूयॉर्क मे हैं। उद्घाटन बैठक के बाद अगले कई दिन तक यूएन परिसर, ऑनलाइन माध्यमों पर अनेक कार्यक्रमों व चर्चाओं का आयोजन किया जाएगा।
”दुनियाभर में जिस समय महिला अधिकारों की मांग पर बढ़ते विरोध का सामना कर रही है, ऐसे में लैंगिक समानता को साकार किया जाना एक अहम लक्ष्य है।” संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारियों ने महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर यह बात कही है।
महिलाओं की स्थिति पर यूएन आयोग का 69वाँ सत्र, न्यूयॉर्क में 10-21 मार्च तक आयोजित किया जा रहा है। यह महिला अधिकारों को बढ़ावा देने, विश्व भर में उनके मौजूदा जीवन की वास्तविकता को परखने और लैंगिक समानता व सशक्तिकरण पर वैश्विक मानकों को आकार देने पर केन्द्रित है।
महासचिव गुटेरेश ने सचेत किया कि महिला अधिकारों के लिए यह एक जोखिम भरा समय है, और इसलिए बीजिंग घोषणापत्र के इर्दगिर्द लामबन्दी की जानी होगी और हर लड़की व महिला के लिए अधिकारों, समानता व सशक्तिकरण के वादों को साकार करने के लिए मज़बूती से खड़ा होना होगा।
महासभा प्रमुख के अनुसार, मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए जिस तरह के राजनैतिक क़दमों व संसाधनों की आवश्यकता है, वह पर्याप्त नहीं है। मौजूदा रफ़्तार से सभी महिलाओं को निर्धनता से बाहर निकालने में 137 वर्ष का समय लगेगा और बाल विवाह का अन्त करने में 68 वर्ष लग सकते हैं।
इस वर्ष के सत्र में महासभा के 23वें विशेष सत्र के नतीजों की समीक्षा के साथ-साथ, बीजिंग घोषणापत्र व कार्रवाई प्लैटफ़ॉर्म पर चर्चा होगी, जिसे 1995 में पारित किया गया था।
कैनेडा से न्यूयॉर्क पहुँची लॉरेटा जैफ़ कॉम्ब्स ने ‘बीजिंग घोषणापत्र’ को इतिहास में एक ऐसा अहम पड़ाव क़रार दिया, जिससे आदिवासी महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों को मान्यता देने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
उन्होंने महासभागार में प्रतिनिधियों को कहा- “अक्सर आदिवासी महिलाओं को निर्णय निर्धारण प्रक्रिया से बाहर छोड़ दिया जाता है, जिससे हमारा भविष्य प्रभावित होता है।”
महिला सशक्तिकरण के लिए यूएन संस्था (UN Women) की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने आगाह किया कि नारी द्वेष से प्रेरित मामलों में उछाल आ रहा है, एक ऐसे समय जब महिलाओं को अनेक संकटों व हिंसक टकरावों का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने में प्रगति दर्ज की गई है, मगर इसकी रफ़्तार धीमी है और अभी इसे और आगे ले जाने की ज़रूरत है।
यूएन एजेंसी प्रमुख ने बड़े बदलावों के लिए कार्रवाई की बात में कहा कि डिजिटल दरारों को पाटना होगा, निर्धनता के खात्मे के लिए निवेश करना होगा और महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के चक्र को तोड़ने के लिए क़ानूनों को मज़बूती देनी होगी।
उन्होंने अहम निर्णय लेने की प्रक्रिया में और शान्तिनिर्माण भूमिकाओं में महिलाओं को साथ लेकर चलने का आहवान किया और कहा कि हम अधिकारों की मांग पर बढ़ते विरोध से भयभीत नहीं हैं। हमें पीछे नहीं हटेंगे।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने इस बात पर दुःख जताया कि पितृसत्ता का विष सामने नज़र आ रहा है जबकि महिलाओं के अधिकारों की घेराबन्दी की जा रही है। उन्होंने कहा कि नारी द्वेष के लिए ज़िम्मेदार लोग की ताक़त बढ़ रही है और ऑनलाइन माध्यमों पर महिलाओं को अनर्गल बातें कही जाती हैं।
यूएन प्रमुख ने पुख़्ता कार्रवाई, शिक्षा में निवेश, महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा का सामना, महिला संगठनों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए समर्थन, टैक्नॉलॉजी क्षेत्र में महिला नेतृत्व के लिए प्रोत्साहन व उनकी पूर्ण भागेदारी को इसका हल बताया।
इन अधिकारीयों ने यूएन मुख्यालय में राजनयिकों, व्यवसायियों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए यह बात कही। यह सभी लोग यूएन मुख्यालय में वार्षिक सम्मेलन के आयोजन पर जुटे थे। बताते चलें कि यूएन आयोग के 68वें सत्र में पिछले वर्ष 100 विश्व नेताओं सहित नागरिक समाज के 4,800 प्रतिभागियों ने शिरकत की थी।