सेहत के जानकार बताते हैं कि बचपन में मोटापे से आजीवन मोटापा, हृदय रोग, मधुमेह और अन्य गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, 2017 से 2018 तक स्कूल जाने वाले 5 में से एक बच्चा मोटापे से ग्रस्त था, और यह दर कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद बढ़ी है।
जॉन्स हॉपकिन्स चिल्ड्रेन सेंटर के शोधकर्ताओं के सहयोग से किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि छोटे बच्चों को मोटापे और संभावित रूप से आजीवन मोटापे से संबंधित समस्याओं से बचाया जा सकता है।
जानकार बताते हैं कि बचपन में मोटापा, हृदय रोग, मधुमेह और अन्य गंभीर बीमारियों के जोखिम को काफी हद तक बढ़ा देता है।
इसके तहत माता-पिता को पारंपरिक इन-क्लिनिक या हेल्थ काउंसलिंग में बच्चों की खाने की आदतें, खेलने का समय और व्यायाम आदि से जुड़े टेक्स्ट मैसेजिंग और अन्य इलेक्ट्रॉनिक फीडबैक से जोड़कर बेहतर नतीजे प्राप्त किए जा सकते हैं।
शोध का नेतृत्व जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन, नर्सिंग और पब्लिक हेल्थ में प्राथमिक देखभाल के प्रतिष्ठित प्रोफेसर, एलियाना पेरिन, एमडी ने किया था और इसके निष्कर्ष जामा (JAMA) में प्रकाशित हुए हैं।
पेरिन कहते हैं कि चिल्ड्रन सेंटर में सामान्य बाल रोग विशेषज्ञ की उपस्थिति में उन्होंने पाया कि माता-पिता अपने बच्चों को स्वस्थ रूप से बड़ा करने में मदद करने के लिए अधिक जानकारी के लिए उत्सुक हैं, और अधिकांश माता-पिता के पास स्मार्टफोन हैं।
दशकों के इस विषय पर शोध से पता चलता है कि बचपन में मोटापा, हृदय रोग, मधुमेह और अन्य गंभीर बीमारियों के जोखिम को काफी हद तक बढ़ा देता है, खासकर कम आय और अल्पसंख्यक आबादी में यह समस्या आम है।