न्यूयॉर्क में होने वाले एक नए अध्ययन से पता चलता है कि पारंपरिक घंटों के दौरान काम करने से वास्तव में हमारे स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह आइंदा जीवन में स्वास्थ्य से संबंधित हो सकता है।
शोध से यह भी पता चला है कि काम के घंटों का स्वास्थ्य पर नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव बुढ़ापे में स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में किए गए इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 7,000 से अधिक लोगों के डेटा का विश्लेषण किया।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या किशोरावस्था के दौरान काम के घंटे 50 वर्ष की आयु तक पहुंचने के बाद इन लोगों की नींद और शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित थे।
Exclusive: official investigation reveals how superconductivity physicist faked blockbuster results
The confidential 124-page report from the University of Rochester, disclosed in a lawsuit, details the extent of Ranga Dias’s scientific misconducthttps://t.co/13uSaspt0u
— Deepak Mohoni (@deepakmohoni) April 6, 2024
अध्ययन में पाया गया कि जिन लोगों के काम के घंटे अनियमित थे, उनमें 50 साल की उम्र में अवसादग्रस्तता के लक्षणों की शिकायत होने की संभावना अधिक थी। इस रूटीन का असर नींद पर भी देखा गया। अधिक पारंपरिक दिन के समय काम करने वालों की तुलना में अन्य लोगों की नींद कम और खराब गुणवत्ता वाली थी।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि अनियमित काम के घंटे खराब नींद, शारीरिक और भावनात्मक थकान से जुड़े होते हैं, जिससे जीवनशैली अस्वास्थ्यकर हो सकती है।
शोध के इन नतीजों के आधार पर अब इतना तो साफ हो गया है कि काम के घंटों का स्वास्थ्य पर नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव बुढ़ापे में स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।