दिल्ली हाईकोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमे अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता सुरजीत सिंह यादव ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की मांग की थी।
दिल्ली के रहने सुरजीत सिंह यादव स्वयं को किसान और सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं। उनका तर्क है कि केजरीवाल के पद पर बने रहने से न केवल कानून की उचित प्रक्रिया में बाधा आएगी बल्कि राज्य में संवैधानिक तंत्र भी टूट जाएगा।
अरविंद केजरीवाल को सीएम पद से हटाने की मांग कर रहे याचिकाकर्ता सुरजीत सिंह यादव के मुताबिक़ उन्होंने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, उनका कहना है कि केजरीवाल के लिए जिम्मेदारी संभालना और एक सीएम के रूप में जेल से काम करना संभव नहीं है।
Delhi High Court dismisses Public Interest Litigation (PIL) praying for the removal of Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal from holding the post of chief minister of the government of Delhi.
The court said there is no scope for judicial interference.
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— ANI (@ANI) March 28, 2024
याचिका मे कई पहलूओं को शामिल किया गया था। इसमें पहला पहलू गोपनीयता का है जबकि दूसरा उनके कैबिनेट मीटिंग नहीं ले पाने का मुद्दा था। याचिकाकर्ता ने तीसरे मुद्दे के तहत कहा था कि दिल्ली में मुख्यमंत्री हर विभाग के काम के बारे में दिल्ली एलजी को रिपोर्ट सौंपते और इन हालत में यह भी संभव नहीं हो सकेगा।
कोर्ट में दाखिल की गई जनहित याचिका में सीएम पद हटाने की मांग में एक कारण यह भी था कि सीएम के रूप में केजरीवाल को जो मासिक वेतन मिलता है वह एक विधायक से भी अधिक होता है। इसलिए अगर वह सीएम के रूप में काम करने में सक्षम नहीं है तो उस पैसे को भी न दिया जाए।
याचिका में ये भी कहा गया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के कामकाज के लेन-देन नियम, 1993 एक मुख्यमंत्री को कैबिनेट के किसी भी विभाग से टोर फाइलें मंगाने का अधिकार देता है। ऐसे में अगर केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रहते हैं, तो वह अपने अधिकारों के दायरे में रहेंगे। वह उन फाइलों की जांच की मांग भी कर सकते हैं जिनमें उन्हें आरोपी बताया गया है। याचिकाकर्ता ने इस स्थिति को आपराधिक न्यायशास्त्र के लोकाचार के खिलाफ बताया है।