न्यूयॉर्क: एक आम सफाई वाला केमिकल पार्किंसंस रोग के खतरे को पांच गुना तक बढ़ा सकता है। ट्राइक्लोरोएथिलीन नामक इस रसायन का उपयोग पूरी दुनिया में कई कामों के लिए किया जा रहा है।
ट्राइक्लोरोएथिलीन का उपयोग आमतौर पर कमर्शियल ड्राई क्लीनर्स, औद्योगिक उत्पादों, वाइप्स, पेंट हटाने वाले रसायनों और कालीन सफाई उत्पादों में किया जाता है। पिछले 100 वर्षों से दुनिया भर में ट्राइक्लोरोएथिलीन (TCE) का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है।
ट्राइक्लोरोएथिलीन गर्भपात, कैंसर और अन्य बीमारियों का कारण भी बन सकता है, यह पार्किंसंस के खतरे को 500% तक बढ़ा सकता है।
गौरतलब है कि टीसीई स्थायी दाग हटाने वाले उत्पादों में भी पाया जाता है। ट्राइक्लोरोएथिलीन गर्भपात, कैंसर और अन्य बीमारियों का कारण भी बन सकता है, लेकिन यह पार्किंसंस के खतरे को 500 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।
पार्किंसंस रोग के जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में, रोचेस्टर विश्वविद्यालय के न्यूरोलॉजिस्ट रे डोरसी और अन्य ने कम से कम सात हस्तियों का वर्णन किया है जो कुछ समय के लिए टीसीई के संपर्क में थे और पार्किंसंस रोग विकसित कर चुके थे।
1970 के दशक में इसका अंधाधुंध उपयोग बढ़ा और वार्षिक खपत 60 मिलियन पाउंड तक पहुंच गई। इसने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक लाख से अधिक अमरीकी इसके संपर्क में आये और ये रसायन उनके घरों तक भी पहुंच गया।
जानवरों पर किये जाने वाले प्रयोगों से खुलासा हुआ कि टीसीई अणु मानव शरीर में मस्तिष्क और त्वचा से प्रवेश करते हैं। वहां जाकर ये कोशिकीय ऊर्जा गृह यानी माइटोकॉन्ड्रिया को नष्ट कर देते हैं। यह मस्तिष्क की कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) को प्रभावित करता है और इस प्रकार पार्किंसंस के जोखिम को बढ़ाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है और स्लो पॉइज़न की तरह काम करता है।