सोनीपत. संतोष वेट लिफ्टिंग में 7 गोल्ड जीतने के बावजूद सरकारी नौकरी को तरस रही है. वेट लिफ्टिंग में कई पदक जीतने के बावजूद सरकारी नौकरी को तरस रही ये खिलाड़ी एक तरफ सरकार मेडल जीतने के बाद खिलाड़ियों को नौकरी और आर्थिक साहयता देने की बात कहती है. लेकिन जब खिलाड़ी पैसे की कमी के कारण ही खेलना छोड़ दें, तो क्या हो?
एक तरफ सरकार मेडल जीतने के बाद खिलाड़ियों को नौकरी और आर्थिक साहयता देने की बात कहती है. लेकिन जब खिलाड़ी पैसे की कमी के कारण ही खेलना छोड़ दें, तो क्या हो? ऐसा ही मामला सामने आया है हरियाणा के सोनीपत में. जहां नेशनल और स्टेट लेवल पर वेट लिफ्टिंग में 7 गोल्ड मेडल जीतने के बाद भी चाय बेचने को मजबूर होना पड़ा है. एक तरफ सरकार मेडल जीतने के बाद खिलाड़ियों को नौकरी और आर्थिक साहयता देने की बात कहती है. लेकिन जब खिलाड़ी पैसे की कमी के कारण ही खेलना छोड़ दें, तो क्या हो? ऐसा ही मामला सामने आया है हरियाणा के सोनीपत में. जहां नेशनल और स्टेट लेवल पर वेट लिफ्टिंग में 7 गोल्ड मेडल जीतने के बाद भी चाय बेचने को मजबूर होना पड़ा है.
23 साल की वुमन वेट लिफ्टर संतोष प्रैक्टिस के दौरान घुटने में चोट लग गई थी और उनके पास इलाज के लिए पैसे तक नहीं थे और मजबूरी में उनको खेल छोड़ना पड़ा था. 23 साल की वुमन वेट लिफ्टर संतोष प्रैक्टिस के दौरान घुटने में चोट लग गई थी और उनके पास इलाज के लिए पैसे तक नहीं थे और मजबूरी में उनको खेल छोड़ना पड़ा था.
सरकार ने इलाज के लिए संतोष को 2 लाख रूपये की साहयता तो दे दी लेकिन खिलाड़ी और परिजनों ने सरकार से सरकारी नौकरी की मांग की है. सरकार ने इलाज के लिए संतोष को 2 लाख रूपये की साहयता तो दे दी लेकिन खिलाड़ी और परिजनों ने सरकार से सरकारी नौकरी की मांग की है.
संतोष नेशनल और स्टेट लेवल पर पावर लिफ्टिंग में 7 गोल्ड मेडल जीतने के बाद भी चाय बेचने को मजबूर होना पड़ा है. गरीबी के कारण वह एक प्राईवेट नौकरी भी करती है और उसी पैसे से अपना परिवार चलाती है. संतोष नेशनल और स्टेट लेवल पर पावर लिफ्टिंग में 7 गोल्ड मेडल जीतने के बाद भी चाय बेचने को मजबूर होना पड़ा है. गरीबी के कारण वह एक प्राईवेट नौकरी भी करती है और उसी पैसे से अपना परिवार चलाती है.
संतोष के पिता राजेन्द्र कुमार चाय की दुकान चलाते हैं और किराए के मकान में रहते हैं. गरीबी के कारण 7 लोगों के परिवार का गुजारा बड़ी मश्किल से चलता है. अपने पिता की मदद के लिए संतोष चाय की दुकान पर काम करती है. संतोष के पिता राजेन्द्र कुमार चाय की दुकान चलाते हैं और किराए के मकान में रहते हैं. गरीबी के कारण 7 लोगों के परिवार का गुजारा बड़ी मश्किल से चलता है. अपने पिता की मदद के लिए संतोष चाय की दुकान पर काम करती है.
वहीं संतोष के पिता राजेन्द्र का कहना है कि उसने चाय बेच कर व घर-घर घुम कर पैसे कमाए और बेटी के खेल को जारी रखा, लेकिन बेटी को चोट लगने के बाद सरकार ने जो पैसे दिये थे उससे इलाज हुआ है. अब सरकार एक चपडासी की ही नौकरी दे तो गुजारा चल जाए और इसकी बहनों की तरह इसकी भी शादी कर दूंगा. वहीं संतोष के पिता राजेन्द्र का कहना है कि उसने चाय बेच कर व घर-घर घुम कर पैसे कमाए और बेटी के खेल को जारी रखा, लेकिन बेटी को चोट लगने के बाद सरकार ने जो पैसे दिये थे उससे इलाज हुआ है. अब सरकार एक चपडासी की ही नौकरी दे तो गुजारा चल जाए और इसकी बहनों की तरह इसकी भी शादी कर दूंगा.