स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (SpaDeX) मिशन के तहत श्रीहरिकोटा के स्पेसपोर्ट में पहले लॉन्चपैड से PSLV-C60 पर रात 10 बजे के करीब दो उपग्रहों ने उड़ान भरी। इसरो अब अंतरिक्ष में इन दो यान को जोड़ने की क्षमता का प्रदर्शन करने जा रहा है।
इस प्रयोग के साथ अब भारत भी अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यान को जोड़ने की तकनीक की बराबरी करने जा रहा है। इसरो द्वारा इसे सफलतापूर्वक मैनेज करने के बाद, स्पेस टेक्नोलॉजी की दुनिया में भारत एक और मज़बूत दावेदारी का हक़दार हो जाएगा। अभी तक केवल अमरीका, रूस और चीन ही इस तकनीक में सफल होने का दावा करते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स से मुताबिक़ 7 जनवरी को डॉकिंग पूरी होने की उम्मीद है। इसरो द्वारा भेजे गए 220 किलोग्राम वजन वाले दो छोटे उपग्रहों को कक्षा में भेजा गया है। चंद्रयान-4 और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए इसे बेहद महत्वपूर्ण बताया जा रहा है।
जल्द ही भारत अंतरिक्ष-डॉकिंग तकनीक वाले देशों की सूची का हिस्सा होगा। देश अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यान को जोड़ने की क्षमता का प्रदर्शन करने जा रहा है।
इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने जानकारी दी है कि रॉकेट ने उपग्रह को सही कक्षा में स्थापित कर दिया है। उपग्रह एक के पीछे एक चले गए। इसरो द्वारा भेजे गए दो उपग्रहों में से पहला प्रक्षेपण के 15.1 मिनट बाद अलग हो गया, जबकि दूसरा 15.2 मिनट पर हुआ। इसे इसरो द्वारा 475 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में स्थापित करने में सफलता मिल गई है।
लॉन्च के तुरंत बाद इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया कि यह मिशन चंद्रयान-4 और नियोजित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के अलावा भी कई प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण है। इसका सबसे बड़ा योगदान भारत के भविष्य के अंतरिक्ष प्रयासों के लिए होगा।
आगे उन्होंने कहा कि अगले कुछ दिनों में उनकी दूरी बढ़कर लगभग 20 किमी रह जाएगी। इस अंतर के घटने के बाद डॉकिंग का काम किया जाएगा। उनका कहना है कि आने वाले सप्ताह में डॉकिंग पूरी होने की उम्मीद कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने 7 जनवरी की तिथि बताई है।
इसकी सहायता से इसरो अंतरिक्ष में बीज अंकुरण के प्रदर्शन हेतु अपना कॉम्पैक्ट रिसर्च मॉड्यूल पेलोड भी लॉन्च कर रहा है। इसके अलावा अंतरिक्ष मलबे की निगरानी और उसे पकड़ने के मक़सद से तैयार एक रोबोटिक आर्म और एक परिष्कृत अंतर-उपग्रह संचार प्रणाली शामिल है।
इतना ही नहीं, इसरो 7 डिग्री आज़ादी वाला एक सक्रिय यूनिक रोबोटिक आर्म का प्रदर्शन करेगा जो भविष्य के स्पेस स्टेशन ऑपरेशन में सहयोग कर सकेगा।