आलू हमारी खाने की थाली का ऐसा हिस्सा है जो न सिर्फ़ स्वाद बल्कि दुनिया भर की खाद्य सुरक्षा, रोज़गार और खेती की रीढ़ भी है।
दो दिन पहले जब 30 मई 2025 को दूसरा अन्तरराष्ट्रीय आलू दिवस मनाया गया तो आलू से जुड़े तमाम ऐसे तथ्य भी सामने आये जो बताते हैं कि कितने ही ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ इस आलू ने अपनी घुसपैठ बना रखी है। दूसरे अन्तरराष्ट्रीय आलू दिवस की थीम है: “इतिहास रचते हुए, भविष्य को पोषण देना।”
दिसम्बर 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, 30 मई को अन्तरराष्ट्रीय आलू दिवस घोषित किया। इसका उद्देशय है आलू की पोषण, आर्थिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक भूमिका को सामने लाना, और आलू की मदद से 2030 के सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करना।
आलू के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को मान्यता देने वाला यह दिन दिखाता है कि आलू, किस तरह आज की वैश्विक खाद्य प्रणालियों का अहम हिस्सा बन चुका है।
5 हज़ार से अधिक क़िस्में हैं आलू की
क्या आप जानते हैं कि विश्व में 5 हज़ार से अधिक तरह के आलू पाए जाते हैं? ये क़िस्में और भी ज़्यादा ख़ास हैं क्योंकि इनमें से कई लैटिन अमरीका के छोटे-छोटे इलाक़ों की अनोखी देन हैं।
इसके अलावा आलू के 150 जंगली रिश्तेदार भी हैं, जो इसे अलग-अलग पर्यावरणीय चुनौतियों से लड़ने और बेहतर गुणों को अपनाने में मदद करते हैं।
आलू की खेती ख़ासकर छोटे और परिवार-आधारित किसान करते हैं, जिनमें महिलाएँ भी बड़ी भूमिका निभाती हैं। ये किसान भूख, ग़रीबी और कुपोषण कम करने में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं और साथ ही जैव विविधता के संरक्षण में भी मदद करते हैं।
आलू का स्वादिष्ट सफ़र
आलू की कहानी शुरू होती है दक्षिण अमरीकी एंडीज़ पर्वतमाला से, जहाँ से यह 16वीं सदी में योरोप पहुँचा और फिर पूरे विश्व में फैल गया।
आज ये फ़सल सिर्फ़ खाने का साधन नहीं, बल्कि एक रणनीति है जो उन इलाक़ों में पोषण और आजीविका सुनिश्चित करती है जहाँ ज़मीन और पानी जैसी प्राकृतिक सम्पत्तियाँ कम हैं और खेती महंगी पड़ती है।
आलू की सबसे बड़ी ख़ासियत इसकी बहुमुखी उपयोगिता है. यह ठंडे, ग़र्म, सूखे या नम, हर तरह की परिस्थितियों में फल-फूल सकता है।
और तो और, यह पर्यावरण के लिए भी बेहतर है क्योंकि इसकी खेती में अन्य फ़सलों के मुक़ाबले कम ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न होती हैं।
पिछले दस सालों में आलू की खेती में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिससे लाखों लोगों को रोज़गार और आय के अवसर मिले हैं। लेकिन भूख और कुपोषण ख़त्म करने के लिए इसकी पूरी क्षमता का अब भी सही उपयोग किया जाना बाक़ी है।