हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाक़े इस समय कुदरती त्रासदी झेल रहे हैं। भारी वर्षा के साथ बादल फटने की घटनाओं ने यहाँ क़हर ढाया हुआ है। भूस्खलन के कारण पहाड़ टूटने से बड़ी आबादी तबाही का सामना कर रही है। प्रदेश में एक सप्ताह में बादल फटने और भूस्खलन से 60 से अधिक लोग मारे गए हैं।
हिमाचल के पहाड़ी इलाक़ों में बादल फटना आम बात है मगर इस प्राकृतिक आपदा के कारण रोज़गार ठप्प और स्कूल-कॉलेज बंद हैं। प्रभावित इलाक़ों में मंडी, शिमला, कुल्लू, जिला सिरमौर में हालात बहुत खराब हैं।
पहाड़ी इलाक़े में एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से अधिक बारिश को बादल फटना कहते हैं। ऐसे में बाढ़ की स्थिति बन जाती है, जिसके नतीजे में भूस्खलन और तबाही का खतरा सामने आता है।
प्रदेश में एक सप्ताह में बादल फटने और इसके परिणामस्वरूप हुए भूस्खलन के चलते 60 से अधिक लोगों के मरने की खबर है और कई लोगों के इस भूस्खलन में जमींदोज होने की बात कही जा रही है। जिसके लिए तलाशी अभियान अभी भी जारी है।
दरअसल बादल फटना उस परिस्थिति को कहते हैं जब किसी पहाड़ी जगह पर एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से अधिक बारिश हो। बारिश की ये मात्रा औसत से अधिक होती है और इससे जान और माल का भारी खतरा उठाना पड़ता है।
मौसम वैज्ञानिक बादल फटने की समस्या को पहाड़ी इलाक़े में आम बताते हैं। यह हिमालय के पहाड़ी इलाकों या पश्चिमी घाटों में आम होती है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक़ जिस समय मानसून की गर्म हवाएं ठंडी हवाओं के संपर्क में आती हैं तो बड़े बादलों का निर्माण होता है। इस घटना के लिए भौगोलिक कारक भी ज़िम्मेदार होते हैं।
वैसे तो बादल फटने की घटना धरती से करीब 15 किलोमीटर के ऊंचाई पर होती है, इस घटना के परिमाणस्वरूप लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से वर्षा होती है। वर्षा की मात्रा अधिक होने से प्रभावित क्षेत्र में बाढ़ जैसी परिस्थितियां हो जाती हैं।
पहाड़ी इलाक़ों के ये बादल 13-14 किलोमीटर ऊँचाई तक फैले होते हैं और इन्हे क्युमुलोनिंबस कहते हैं। जब यह बादल किसी ऐसे क्षेत्र में हों जहाँ हवा नहीं होती है तो यह बरस जाते हैं। यही तेज़ बारिश बाढ़ की परिस्थितियां पैदा कर देती हैं। जिसे आम भाषा में बादल फटना कहते हैं।
क्योंकि पानी कम समय में ज़्यादा मात्रा में गिरता है और उसका बहाव तेज़ होता है। तेज बहाव के कारण बाढ़ और भूस्खलन के हालात बन जाते हैं और जान-माल का खतरा पैदा हो जाता है।
भारत की भौगोलिक परिस्थितियों में मानसून के मौसम में नमी से भरा बादल जब उत्तर की तरफ बढ़ता है तो हिमालय से टकरा जाता है। यहाँ नमी से भरा बादल और गर्म हवाओं की टक्कर के कारण भी बादल फटने जैसी घटना होती है।
हवाओं के रुख और भौगोलिक परिस्थितियों के चलते ये घटना इन क्षेत्रों के लिए आम बात है। इसका एक दम सटीक पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है और यही कारण है कि बादल फटने से आज भी बड़ी संख्या में जान और संपत्ति का नुकसान झेलना पड़ता है।