सऊदी नरेश ने अपने बेहद संक्षिप्त बयान में कौन सी बुरी ख़बर छिपाई? बयान सारे अरबों की चिंता बढ़ाने वाला क्यों था? क्या होगा मध्यपूर्व का हाल?इन दिनों केवल सऊदी अरब ही नहीं है जो बड़े कठिन हालात से गुज़र रहा है बल्कि फ़ार्स खाड़ी के सारे अरब देश बल्कि दूसरे सभी अरब देश भी गंभीर कठिनाई में हैं।
कोरोना वायरस से जो तबाही हुई है उसे देखते हुए इस वायरस को महाविनाश का हथियार समझना चाहिए। बहरहाल सऊदी नरेश ने तो सऊदी अरब की कठनाइयों के बारे में बताया। टीवी पर प्रसारित होने वाला सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ का बयान पांच मिनट से ज़्यादा का नहीं था। इसमें कुछ भी नया नहीं था बस जो चीज़ नई थी वह निराशा से भरा हुआ उनका स्वर था।
सऊदी नरेश ने न तो तेल युद्ध की बात की जिसके चलते तेल की क़ीमत 25 डालर प्रति बैरल से भी कम हो गई है और न ही देश के भीतर जारी धरपकड़ पर कुछ बोले जिसके तहत 20 राजकुमारों को भी गिरफ़तार किया गया है और इनमें सऊदी नरेश के भाई अहमद बिन अब्दुल अज़ीज़ भी शामिल हैं। सऊदी नरेश ने बजट घाटे की ओर भी कोई इशारा नहीं किया जो 100 अरब डालर से भी अधिक है।
सऊदी नरेश के बयान का एक महत्व तो यह है कि वह सामने आए, दूसरा महत्व यह है कि उन्होंने देश की जनता को ख़ास संदेश देना चाहा है और तीसरा महत्व यह है कि उन्होंने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पैग़ाम भी अपने इस बयान में दिया है।
सऊदी अरब इस समय कई प्रकार के संकटों से जूझ रहा है जिनके कारण अफ़वाहों का बाज़ार भी गर्म है। सबसे बड़ा मुद्दा शाही परिवार के भीतर जारी भीषण खींचतान से संबंधित है जहां क्राउन प्रिंस का विरोध बढ़ता जा रहा है और वह सत्ता के गलियारों पर अपनी पकड़ और भी म़जबूत करते जा रहे हैं। इसी कोशिश में बिन सलमान ने हालिया दिनों 200 से अधिक अधिकारियों, राजकुमारों और उद्यमियों को गिरफ़तार कर लिया। बिन सलमान ने रूस के ख़िलाफ़ तेल युद्ध भी शुरू कर दिया है जो बहुत ग़लत समय में उठाया गया बड़ा विनाशकारी क़दम है। उन्होंने यह क़दम एसे समय में उठाया है जब कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया में तेल की मांग घटी है।
यमन युद्ध का मुद्दा भी अपनी जगह मौजूद है। यह युद्ध समाप्ति की ओर बढ़ रहा है लेकिन कामयाबी यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन को मिल रही है जिसे सऊदी अरब हरगिज़ सहन नहीं करना चाहता। सऊदी अरब यमन में जिस गुट का समर्थन कर रहा है वह ध्वस्त हो चुका है।
सऊदी नरेश ने सामने आकर एक तो यह साबित करने की कोशिश की कि उनका स्वास्थ्य ठीक है और शासन क्राउन प्रिंस को सौंपे जाने संबंधी अफ़वाहें दुरुस्त नहीं हैं। इसी तरह उन्होंने देश भर में फैली चिंता को कम करने की कोशिश की है। चिंता का कारण यह है कि आयल प्राइज़ मैगज़ीन ने अपनी चौंकाने वाली रिपोर्ट में लिखा है कि सऊदी अरब तीन साल के भीतर दीवालिया हो सकता है। इससे पहले आईएमएफ़ भी कह चुका है कि सऊदी अरब और फ़ार्स खाड़ी के अन्य अरब देश 2034 तक दीवालिया हो जाएंगे क्योंकि दुनिया भर में तेल की डिमांड कम होती जाएगी।
अरब देशों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि कोरोना संकट के बाद के दौर में हालात क्या होंगे? कोई नहीं कह सकता कि इलाक़ा और दुनिया का रंग क्या होगा? अरब देशों की हालत तो अभी से ख़राब हो चुकी है। ओपेक को अब तक 450 अरब डालर का नुक़सान उस युद्ध के कारण हो चुका है जो बिन सलमान ने शुरू किया है।
सऊदी नरेश ने कहा कि कोरोना के कारण आने वाले दिन और भी कठिन होंगे मगर हम कहते हैं कि इससे ज़्यादा कठिनाई अरब देशों के बजट घाटे के कारण होगी। इन देशों की अर्थ व्यवस्था तेल पर निर्भर है और वह मजबूर होंगे कि तेल के अलावा दूसरे विकल्प तलाश करें। कोरोना संकट के बाद जो मध्यपूर्व सामने आएगा वह पूरी तरह अलग होगा।
अब्दुल बारी अतवान
अरब जगत के वरिष्ठ टीकाकार व लेखक