कोलकाता। अब पश्चिम बंगाल का नाम बदल जाएगा। राज्य कैबिनेट ने अंग्र्रेजी में “बंगाल” तथा बांग्ला में “बांग्ला” या फिर “बंग” नाम के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने पहले कार्यकाल 2011 में ही राज्य का नाम बदलने की कोशिश की थी। यहां तक कि सर्वदलीय बैठक में रायशुमारी भी कराई थी। लेकिन सहमति नहीं बन सकी क्योंकि ममता चाहती थीं कि अंग्र्रेजी में भी पश्चिम बंगाल ही लिखा जाए वेस्ट बंगाल नहीं। पर अब अपनी दूसरी पारी में ममता इस कार्य को पूरा करना चाहती हैं। इसलिए मंगलवार को ममता के नेतृत्व में हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में पश्चिम बंगाल का नाम बदलने पर मुहर लगा दी गई।
राज्य कैबिनेट की बैठक में पश्चिम बंगाल का नाम अंग्र्रेजी में “बंगाल” तथा बांग्ला में “बांग्ला” या फिर “बंग” रखे जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। अब इस प्रस्ताव को विधानसभा की सर्वदलीय बैठक में रखा जाएगा और वहां से मुहर लगाने के बाद विधानसभा में पेश किया जाएगा। राज्य का नाम परिवर्तन के लिए 26 अगस्त से विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है।
विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने के बाद नाम परिवर्तन के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। मंगलवार को राज्य सचिवालय में राज्य कैबिनेट की बैठक के बाद शिक्षा व संसदीय मामलों के मंत्री पार्थ चटर्जी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि राज्य की विरासत, संस्कृति एवं लोगों की भलाई के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर राज्य के हितों की रक्षा के लिए हमने पश्चिम बंगाल का नाम बदलने का प्रस्ताव किया है।
राज्य की राजधानी का नाम पहले ही कलकत्ता से बदल कर कोलकाता किया जा चुका है। सरकार की दलील है कि अंग्रेजी वर्णानुक्रम के अनुसार राज्य के नाम की शुरुआत डब्ल्यू से होती है, जिस कारण कई परेशानियां पेश आती हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले महीने दिल्ली में हुई अंतरराज्यीय परिषद की बैठक के बाद भी इस मुद्दे को उठाया था।
उन्होंने कहा था कि वर्णानुक्रम में पीछे होने के कारण उन्हें बोलने के लिए काफी कम समय मिला। अगर विधानसभा में राज्य के नए नाम को मंजूरी मिल जाती है तो वर्णमाला के मुताबिक राज्य का नाम सीधे 29 वें स्थान से दूसरे स्थान पर आ जाएगा। इसका फायदा राज्य के सांसदों को लोकसभा व राज्यसभा में भी मिलेगा। नाम परिवर्तन होने के बाद वे संसद सत्र के पहले हाफ में ही स्थानीय मुद्दे को उठा सकते हैं। अभी उन्हें लंच के बाद यानी दूसरे हाफ में बोलने का मौका मिलता है।
नाम परिवर्तन के इस प्रस्ताव को बुद्धिजीवियों, राजनेताओं तथा अन्य हलकों से जुड़े लोगों ने सराहा है। कांग्र्रेस के वरिष्ठ नेता मानस भुइयां ने कहा कि पहले भी इस पर आम सहमति बनाने की कोशिश की गई थी, लेकिन केंद्र के पास प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली। उन्होंने कहा कि राज्य के परिप्रेक्ष्य में यह कदम सराहनीय है। हमें विचार-विमर्श कर दो नामों में से किसी एक का चयन करना होगा।
वहीं साहित्यकार शीर्षेंदु मुखोपाध्याय ने कहा कि हमें पहले से ही साहित्यिक रचनाओं में बांग्ला का उल्लेख मिलता है, देर से ही सही सरकार के इस प्रस्ताव को सराहनीय कदम कहा जाएगा। आसनसोल से भाजपा सांसद व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने कहा कि इस पहल का मैं तह-ए-दिल से स्वागत करता हूं, लेकिन नाम बंग के बजाय बांग्ला होना चाहिए।