उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना 27 अक्तूबर को जारी की गई थी। तीन चरणों में संपन्न हुए इन चुनावों की मतगणना पहली दिसंबर को हो गई थी। लेकिन इस बार नगर विकास विभाग चुनाव प्रक्रिया को लेकर काफी पिछड़ चुका है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद ओबीसी आरक्षण पर एक नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। विपक्षी पार्टियों ने भी इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी को घेरना शुरू कर दिया है। कोर्ट के निर्णय के बाद भाजपा मुश्किल में है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार द्वारा पिछड़ों का आरक्षण तय करने के बाद ही निकाय चुनाव कराये जायेंगे और इसमें समय लगेगा। इसके लिए पहले सरकार को आयोग का गठन करना होगा तत्पश्चात आयोग की निगरानी में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की प्रक्रिया अपनानी होगी।
इस बीच कई व्यवस्ताएं भी बनी हुई हैं। जिनमे फरवरी में सरकार द्वारा कराया जाने वाला ग्लोबल इंवेस्टर समिट और यूपी सहित विभिन्न बोर्डों की परीक्षाएं तथा प्रेक्टिकल शामिल हैं। इन परिस्थितियों में सरकार के पास अप्रैल या मई से पहले चुनाव करा पाना संभव नहीं है।
दिल्ली- आप सांसद @SanjayAzadSln का ट्वीट,यूपी निकाय चुनाव पर कोर्ट के फैसले का मामला,पिछड़ों का हक मारने के लिए गलत आरक्षण- संजय,जानबूझकर सरकार ने गलत आरक्षण कराया- संजय.#Delhi pic.twitter.com/FiKCPmPSWc
— भारत समाचार | Bharat Samachar (@bstvlive) December 27, 2022
नगर निकाय चुनाव को लेकर नगर विकास विभाग को ये उम्मीद थी कि 14 या 15 दिसंबर तक चुनाव आयोग को कार्यक्रम सौंप दिया जायेगा मगर मामला हाईकोर्ट में फंस गया। रैपिड सर्वे से लेकर आरक्षण की अधिसूचना जारी करने को लेकर कई स्तरों पर हुई चूक सामने आई। जानकारी के मुताबिक इससे पहले निकाय चुनाव में स्थानीय निकाय की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी, लेकिन इस बार रैपिड सर्वे से लेकर आरक्षण तय करने तक की प्रक्रिया से निदेशालय को दूर रखने के चलते जो भूल हुई उसके नतीजे में चुनाव बाधित हुए। इस काम में अनुभवी के के बजाये नए अधिकारियों को लगा दिया गया।
नगर विकास विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2010 के उस फैसले को अनदेखा किया जिसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि चुनाव प्रक्रिया शुरू करने से पहले आयोग का गठन कर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए वार्डों और सीटों का आरक्षण किया जाए। विभाग ने सिर्फ नए नगर निकायों में रैपिड सर्वे कराया और पिछड़ों की गिनती कराकर आरक्षण तय कर दिया। इस प्रक्रिया में पुराने निकायों में रैपिड सर्वे नहीं कराया गया।अब इस भूल की भरपाई जिम्मेदार अधिकारियों को उठानी पद सकती है।