नाइश हसन
जनवादी लेखक संघ का दो रोज़ा आल इंडिया उर्दू कन्वेंशन बतारीख 6 -7 मई 2023 को रांची,झारखण्ड में मोकम्मल हुआ। जिसमें मुल्क़ भर से शामिल हुए दानिश्वरों ने अपनी बात राखी। बात तमाम मौज़ूआत पर हुई मसलन , उर्दू की सूरत -ए -हाल , हिंदी और उर्दू के तख़्लीक़ी रिश्ते, मौजूदा उर्दू अदब के रुझानात , उर्दू सहाफत , हिंदुस्तानी अदब में उर्दू की देन , तरक्कीपसंद तहरीक और उर्दू , उर्दू इदारों की सूरत -ए -हाल। इसके अलावा उर्दू पर रिसर्च कर रही 3 रिसर्च स्कॉलर ने अपने पेपर भी इसी हवाले से पढ़े।

ज़ाहिर है ऐसी कोशिशें हज़ार मुश्किलों के बावजूद उर्दू को फरोग़ दिलाने में कारगर रहेंगी। कन्वेंशन के दौरान कई बहसें ऐसी भी उठीं जो उर्दू बोलने वालों के दरमियान कई सवाल खड़े करती हैं, उर्दू के साथ तमाम निजी इदारों का सलूक कैसा है? क्या उनकी कोशिशें एक सही सिम्त की ओर हैं ? क्या उन्हें खुद अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखना चाहिए , उन्होंने उर्दू को मज़हब से जोड़ रखा है ? सिर्फ सवाल उठाना ही अहम है या उनसे बरक्स हमारी कोशिशे क्या है इस पर भी नज़रे सानी की ज़रुरत है। ज़ाहिर है इन सारे सवालों का एक बड़े मंच पर उठना किसी बेहतरी की ही अलामत है।

किसी भी ज़बान को फ़रोग़ देने में उसके बोलने वालों के साथ ही हुकूमत का भी अहम किरदार होता है। एक ऐसा वक़्त जब हमारे चारों तरफ बेयक़ीनी का माहौल हो, इरादतन किसी ज़बान को कुचला जा रहा हो, सिर्फ इस बिना पर कि उसके बोलने वालों में एक खास मज़हब के लोगों की तादाद ज़्यादा है। चाहे वो स्टेट की हुकूमत हो या पूरे हिंदुस्तान की, दोनों का किरदार यकसां नज़र आ रहा है, उत्तर प्रदेश जहां स्टेट की सेकंड लैंग्वेज का दर्जा हासिल है उर्दू को ,वहां के सूरतेहाल तो ज़्यादा ही खराब है, ये दर्जा महज़ काग़ज़ी है इस सूबे में। बाकी सूबों के हालात भी इस मामले में बेहतर नहीं कहे जा सकते हैं। हुकूमत-ए -वक़्त कोई बारीक़ रास्ता निकालती है और उर्दू को हाशिये पर डालने की कवायद जारी रखती है। मंज़र ख़ौफ़नाक है लेकिन उर्दू लिखने-पढ़ने और सही सोच रखने वालों के हौसले बुलंद है।

इस दो रोज़ा प्रोग्राम में रांची टीम मुबारकबाद की मुस्तहक़ है , और इस प्रोग्राम के रूहे -रवां जनाब एम ज़ेड खान साहेब खास मुबारकबाद के मुस्तहक़ हैं , जिन्होंने कड़ी मेहनत करके इतने दानिश्वरों को एक मंच पर इकठ्ठा किया।
एक अच्छी बात ये भी देखने को मिली कि कन्वेंशन में औरतों की भागीदारी काफी अच्छी रही। 4 औरतों ने इस मौज़ू पर बहुत बेहतरीन और बेबाक तरीके से इज़हार-ए -ख्याल किया , 3 नौजवान लड़कियों ने अपना रिसर्च पेपर पढ़ा।
प्रोग्राम के आखीर में उर्दू फ़रोग़ के लिए एक प्रस्ताव भी पढ़ा गया और उसे सब की रज़ामंदी से पास किया गया , साथ ही कुछ शायरों ने अपना बेहतरीन कलाम भी पेश किया।