2025 में संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु सम्मेलन कॉप30 की मेज़बानी इस बार ब्राज़ील कर रहा है। ऐसे में बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण और हरित अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी वित्तीय संसाधनों सहित कई अन्य मुद्दों पर नियंत्रण हासिल करने के लक्ष्य भी इस दौरान चर्चा का विषय होंगे।
10 से 21 नवम्बर 2025 के बीच आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन, कॉप30 के दौरान उन कार्रवाइयों और नीतियों पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा जो इस धरती की भलाई से जुड़े हों। इसके तहत जिन पांच बिंदुओं पर फोकस किया गया है उनका सिलसिलेवार वर्णन इस प्रकार है-
1. ग्लोबल तापमान
संयुक्त राष्ट्र पिछले कुछ वर्षों से 1.5 डिग्री का लक्ष्य रखने पर ज़ोर दे रहा है। इसके अंतर्गत वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को औद्योगिक युग से पहले के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने से रोकना है। जिनसे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने और बढ़ते तापमान को रोकने में मदद मिल सके।
2. प्रकृति की सुरक्षा
ब्राज़ील के ऐमेज़ॉन वर्षावन क्षेत्र में कॉप30 का आयोजन पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अन्तरराष्ट्रीय प्रयासों के शुरुआती दिनों की याद दिलाता है। उस “पृथ्वी शिखर सम्मेलन” में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और मरुस्थलीकरण पर तीन पर्यावरणीय सन्धियों को आकार दिया गया। इस सम्मेलन को वर्ष 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो शहर में आयोजित किया गया था।
इस आयोजन के द्वारा जलवायु संकट और उससने निपटने में प्रकृति की क्या भूमिका पर बात होगी। वर्षावन एक विशाल “कार्बन सिंक” है, जो CO2 जैसी ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित और संग्रहीत करते हैं, तथा इन्हें वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकते हैं, जहाँ ये वैश्विक तापमान वृद्धि की वजह बन सकती हैं।
दुखद है कि वर्षावन और अन्य “प्रकृति-आधारित समाधान” मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न ख़तरों का सामना कर रहे हैं। इनमे अवैध कटाई का बड़ा रोल है, जिसने इस वन क्षेत्र के बड़े हिस्सों को बर्बाद कर दिया है। इस क्रम में, संयुक्त राष्ट्र 2024 में शुरू किए गए अपने प्रयासों को जारी रखेगा, ताकि वर्षावन व अन्य पारिस्थितिकी तंत्रों की बेहतर तरीक़े से रक्षा की जा सके. इस दिशा में फ़रवरी में रोम में जैव विविधता पर होने वाली वार्ता में बातचीत फिर शुरू की जाएगी।
3. भुगतान
लम्बे समय से वित्तपोषण की समस्या, अन्तरराष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। विकासशील देशों का तर्क है कि सम्पन्न राष्ट्रों को उन परियोजनाओं और पहलों में कहीं अधिक योगदान देना चाहिए, जो उन्हें जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने व स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने में सक्षम बनाएगी।
वहीं, समृद्ध देशों का कहना है कि दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन औरा ऐसी अन्य तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं को भी इस संकट से निपटने में अपना दायित्व निभाना होगा।
अज़रबैजान के बाकू शहर में हुए कॉप29 में जलवायु वित्त पोषण के क्षेत्र में एक बड़ी प्रगति हुई, यहाँ अपनाए गए एक समझौते के तहत 2035 तक विकासशील देशों को दी जाने वाली जलवायु सहायता धनराशि को तीन गुना बढ़ाकर प्रति वर्ष 300 अरब डॉलर करने के लक्ष्य पर सहमति हुई है। यह समझौता निश्चित रूप से एक सकारात्मक क़दम है, लेकिन यह राशि जलवायु संकट से निपटने के लिए 1,300 अरब डॉलर की अनुमानित आवश्यकता से काफ़ी कम है।
2025 में, वित्त पोषण के क्षेत्र में और प्रगति की उम्मीद है। जून महीने के अन्त में स्पेन में एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। विकास के लिए वित्त पोषण सम्मेलन हर 10 साल में एक बार होते हैं, और इस आयोजन को अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे में मौलिक बदलाव लाने का एक अवसर माना जा रहा है।
4. क़ानूनी उपाय का निर्धारण
दिसम्बर में जब अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय का ध्यान जलवायु परिवर्तन की ओर गया, तो इसे अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत देशों की क़ानूनी ज़िम्मेदारियों के सम्बन्ध में एक ऐतिहासिक क्षण क़रार दिया गया।
जलवायु संकट के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील एक प्रशान्त द्वीपीय देश वानुआतु ने अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) से सलाहकारी राय माँगी, ताकि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी देशों की ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट किया जा सके और भविष्य में किसी भी न्यायिक कार्रवाई को दिशा दी जा सके।
दो सप्ताह की अवधि में, 96 देशों और 11 क्षेत्रीय संगठनों ने न्यायालय के समक्ष सार्वजनिक सुनवाई में भाग लिया, जिनमें वानुआतु और प्रशान्त द्वीप समूह के अन्य देशों के साथ-साथ, चीन व अमेरिका जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हुईं।
अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा इस विषय पर अपनी सलाहकार राय देने से पहले कई महीनों तक विचार-विमर्श किया जाएगा। यह राय बाध्यकारी नहीं होगी, लेकिन इससे भविष्य में अन्तरराष्ट्रीय जलवायु क़ानून को मार्गदर्शन हासिल होगा।
5. प्लास्टिक प्रदूषण
प्लास्टिक प्रदूषण की वैश्विक समस्या से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से दक्षिण कोरिया के बुसान में हुई वार्ताओं के दौरान एक समझौते के क़रीब पहुँचा गया है।
सदस्य देशों को अब अपने राजनैतिक मतभेदों को दूर करने व प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करने के लिए, प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र को सम्बोधित करने वाले एक अन्तिम समझौता तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की कार्यकारी निदेशक इंगेर ऐंडरसन ने कहा- “यह स्पष्ट है कि दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण को ख़त्म करने के लिए अभी भी तत्पर है और इसकी मांग करती है।”
आगे उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम ऐसा साधन तैयार करें जो समस्या को प्रभावी ढंग से हल करे, न कि इसके सम्भावित दबाव से ढह जाए। मैं सभी सदस्य देशों से अपील करती हूँ कि वो इसमें पूरा सहयोग दें।