खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ईधन बच्चों के लिए जानलेवा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ घरों में प्रयोग किए जाने वाले जीवाश्म ईंधन से एक हजार में से 27 शिशुओं की मौत हो जाती है।
डाउन तो अर्थ की एक रिपोर्ट से खुलासा होता है कि रिसर्च के मुताबिक प्रदूषण का एक महीने से कम आयु के शिशुओं पर सबसेअधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि उनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते। इसके अलावा ये बच्चे खाना पकाने के समय अपनी माँ के करीब होते हैं।
देश में हर हजार शिशुओं और बच्चों में से 27 की जान खाना पकाने के लिए उपयोग होने वाले जीवाश्म ईंधन के कारण हो जाती है।
इस अध्ययन नतीजे जर्नल ऑफ इकोनॉमिक बिहेवियर एंड ऑर्गनाइजेशन में प्रकाशित हुए हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में यह प्रदूषण बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। इसके चलते बच्चे घरों के भीतर भी सुरक्षित नहीं हैं।
इस संबंध में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता कहते हैं कि देश में हर हजार शिशुओं और बच्चों में से 27 की जान खाना पकाने के लिए उपयोग होने वाले जीवाश्म ईंधन के कारण हो जाती है।
शोधकर्ताओं के इसे अपनी तरह का पहला अध्ययन मानते हैं जो भारतीय घरों में खाना पकाने के लिए उपयोग होने वाले जीवाश्म ईंधन की वास्तविक लागत को उजागर करता है।
प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ वर्ष 1992 से 2016 के बीच किये गए अध्ययन में 25 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण इन घरों में उपयोग होने वाले सभी प्रकार के दूषित ईंधनों की जानकारी देता है।
अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि इस प्रदूषण का एक महीने से कम आयु के शिशुओं पर सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि खाना पकाने के समय इतने छोटे बच्चे ज़्यादातर माँ के समीप होते हैं और बेहद छोटे होने के कारण इनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं।
अध्ययन के समय रिसर्चर ने भारतीय घरों में उपयोग होने वाले दस विभिन्न प्रकार के ईंधन की जानकारी इकठ्ठा की। इनमे केरोसिन से लेकर लकड़ी, कोयला, फसल अवशेष और गोबर जैसे जीवाश्म ईंधन शामिल थे।
शोध प्रमुख अर्नब बसु का कहना है कि भारतीय घरों में लड़कों की तुलना में लड़कियों की मृत्यु दर कहीं ज्यादा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन परिवारों में बेटी की तुलना में बेटों को प्राथमिकता दी जाती है। यहाँ निम्न और निम्न मध्य वर्ग परिवारों में बेटी के स्वास्थ्य समस्या जैसे खांसी या बुखार होने पर वे उनका इलाज समय पर नहीं कराते हैं।
इसके अलावा बेहद छोटे घर और उनकी बनावट तथा घरों का हवादार न होना भी बड़ी समस्या के रूप में सामने आया। इस कारण भी शिशुओं पर प्रदूषण का ज्यादा असर देखा गया।