2025 की जनवरी अब तक के रिकॉर्ड में सबसे गर्म महीना दर्ज की गई है। वैश्विक तापमान में ला नीना प्रभाव की वजह से कमी होने की उम्मीद जताई जा रही थी, मगर ऐसा नहीं हुआ।
जानकारों के मुताबिक़, जनवरी में वैश्विक तापमान, औद्योगिक युग की शुरुआत से पहले के स्तर से 1.75 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। यूरोपीय जलवायु संस्था ‘कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस’ ने बढ़े हुए तापमान का खुलासा किया है।
बीते माह प्रकाशित उनकी रिपोर्ट ‘ग्लोबल क्लाइमेट हाइलाइट्स’ में बताया गया है कि 2024 अब तक के रिकॉर्ड का सबसे गर्म वर्ष था। इस साल पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में तापमान 1.6 डिग्री सेल्यिस अधिक रहा। याद दिला दें कि इससे पूर्व 2023 सबसे गर्म साल था।
कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की उपनिदेशक समांथा बर्जेस का कहना है कि दुनिया अब 1.5 डिग्री के स्तर को पार करने की कगार पर आ गई है। आगे उन्होंने बताया कि पिछले दो सालों के औसत तापमान ने पहले ही इस सीमा को पार कर लिया है। फिर भी वह कहती हैं कि इसका मतलब यह नहीं है कि पेरिस समझौता टूट गया है क्योंकि समझौते के तहत दशकों के तापमान का औसत निकाला जाता है, ना कि अलग-अलग वर्षों का।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन के साल 2015 में होने वाले पेरिस एग्रीमेंट में विश्व के 196 नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई थी कि ग्लोबल वॉर्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होने देंगे और वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के लिए प्रयास किया जाएगा।
आंकड़े बताते हैं कि अल नीनो के कारण महासागरों की सतह के औसत तापमान में साल 1991-2020 के औसत की तुलना में 0.5 डिग्री सेल्सियस का इज़ाफ़ा पाया गया है।
दरअसल अल नीनो की स्थिति हर दो से सात साल बाद बनती है। इसके नतीजे में मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर गर्म होने से समुद्र की सतह का औसत तापमान बढ़ जाता है।
वैज्ञानिकों इसे बेहद चिंताजनक बताते हैं। उनका मानना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ी लगभग 90 फीसदी हीट को महासागर ही स्टोर करके रखते हैं।
इस संबंध में जलवायु वैज्ञानिक ब्रेंडा ऐकवुर्जल का कहना है कि महासागरों ने पिछले पांच या सात दशकों में एक बफर जोन का काम किया है। उनके मुताबिक़, अब हम उस बफर की क्षमता को पार कर रहे हैं और धरती पर चरम मौसमी घटनाओं के रूप में उसका असर सामने आ रहा है।