नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, दुनिया भर में बाल अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं। ईटीवी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि दुनिया में करुणा की कमी है।
कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि दुनिया इतनी गरीब नहीं है लेकिन करुणा की कमी है। इंटरव्यू में वह कहते हैं कि धरती पर जितना पैसा युद्ध और हथियारों पर हर साल खर्च किया जाता है, केवल उसकी दस दिन की राशि में दुनिया के हर गरीब देश के हर बच्चे को शिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ्य मुहैया करा सकते हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि महिलाओं और नवजात शिशुओं का भरण-पोषण भी किया जा सकता है।
आगे उन्होने कहा कि शब्दों और उपदेशों से दुनिया नहीं बदलेगी। उनके अनुसार आज भारत ही नहीं पूरे संसार में उपदेशक हैं.. चमत्कारी उपदेशक।
इंटरव्यू के दौरान उनसे सवाल किया गया कि जिस व्यक्तित्व का जीवन एक लौ की तरह रहा हो, उनकी आत्मकथा की किताब का नाम दिया सलाई क्यों है? और इसके जवाब में उनका कहना था कि दियासलाई किताब अकेली नहीं है। इससे पहले भी वह कई किताबें लिख चुके हैं। जवाब में वह कहते हैं कि दियासलाई आईने के सामने खड़े होकर परत दर परत खोलते जाना है।
अपनी आत्मकथा का नाम दियासलाई रखने के हवाले से वह कहते हैं कि बचपन में, घर मोहल्ले में बिजली नहीं होने से लालटेन की रोशनी में उन्होंने पढ़ाई की। जब वह कांच की शीशियों में बत्ती तेल डालकर उसे जलाते थे और उसकी रोशनी में पढ़ाई करते थे, जिसे चिमनी या ढिबरी कहते थे। यह चिमनी जरूरत होने पर जलाई जाती थी।
उनके मुताबिक़, जरूरत पर चिमनी को बुझा कर फिर जला लिया जाता था जबकि जो दियासलाई उसे जलाती थी उसे एक बार जलाने के बाद फेंक दिया जाता था। ऐसे में वह दियासलाई को देखकर देश को आजादी दिलाने वालों को याद करते हुए उनके समर्पण त्याग और राष्ट्रभक्ति इसे समर्पण, त्याग और राष्ट्रभक्ति से जोड़ते हैं।
एक और सवाल के जवाब में वह चेतना और करुणा को वरदान बताते हैं। उनके मुताबिक़ करुणा हमें जोड़ती है। करुणा को वह समाज का.. परिवार का.. विश्व व्यवस्था का एक दूसरे के प्रति उसकी तकलीफ को अपनी तकलीफ की तरह से महसूस करते हुए उस कष्ट का निवारण से जोड़ते हैं।
वे कहते हैं, सारे धर्म दुनिया के करुणा की चिंगारी से पैदा हुए है। दूसरे की तकलीफ अपनी तकलीफ की तरह महसूस किया और ताकत को झोंककर उनको दूर करने के प्रयास किया। इसलिए वह करुणा को पुर्नपरिभाषित करने की बात कहते हैं।
दुनिया में युद्ध की विभीषिका और गाजा में मारे जा रहे बच्चों के बारे में वह कहते हैं कि जो बच्चे उपेक्षित हैं, स्वयं शक्तिशाली बनें। स्वयं अपना नेतृत्व करें। उनके मुताबिक़ हमारी दुनिया में बच्चों की आवाज युवाओ की आवाज नैतिक शक्ति से भरपूर हो सकती है। वह इसे सबसे ज्यादा ताकतवर और असरदार बताते हैं।