मानव मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक कणों की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक नए शोध से पता चलता है कि समय के साथ यह समस्या और भी बदतर होती जा रही है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि मस्तिष्क में प्लास्टिक की मात्रा लगभग 50 प्रतिशत बढ़ गई है, जो वजन में एक प्लास्टिक के एक चाय के चम्मच के बराबर है।
नेचर पत्रिका में प्रकाशित इस नए शोध में पाया गया कि 2024 में एकत्र किए गए मस्तिष्क के नमूनों में आठ साल पहले लिए गए नमूनों की तुलना में काफी अधिक माइक्रोप्लास्टिक्स मौजूद थे।
न्यू मैक्सिको स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मानव मस्तिष्क में अन्य अंगों की तुलना में बहुत अधिक मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाया है। समय के साथ बढ़ने वाला प्लास्टिक का संचय पिछले आठ वर्षों में 50 फीसद बढ़ गया है।
माइक्रोप्लास्टिक, विघटित पॉलिमर के छोटे-छोटे टुकड़े हैं जो हमारी हवा, पानी और मिट्टी में सर्वत्र मौजूद हैं। पिछली आधी सदी से यह यकृत, गुर्दे, प्लेसेंटा और वृषण सहित पूरे मानव शरीर में जमा हो रहे हैं।
नेचर मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन में, विषविज्ञानी मैथ्यू कैम्पेन, पीएचडी, यूएनएम कॉलेज ऑफ फार्मेसी में प्रतिष्ठित और रीजेंट्स प्रोफेसर के नेतृत्व में एक टीम ने बताया कि मस्तिष्क में प्लास्टिक की सांद्रता यकृत या गुर्दे की तुलना में अधिक दिखाई दी, और प्लेसेंटा और वृषण के लिए पिछली रिपोर्टों की तुलना में अधिक थी।
मैथ्यू केम्पेन ने आगे कहा कि 2016 के मस्तिष्क के नमूनों की तुलना में मस्तिष्क में लगभग 50 प्रतिशत अधिक माइक्रोप्लास्टिक पाए गए। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ यह है कि आज हमारे मस्तिष्क का 99.5 प्रतिशत भाग मस्तिष्कीय पदार्थ से बना है तथा शेष भाग प्लास्टिक का है।
कैम्पेन ने कहा कि इंसान के जिस्म में संचय की दर इस ग्रह पर प्लास्टिक कचरे की बढ़ती मात्रा को दर्शाती है। आगे उन्होंने कहा कि प्लास्टिक का अधिकांश हिस्सा पहले की तुलना में बहुत छोटा प्रतीत होता है। जिसे उन्होंने नैनोमीटर पैमाने पर वायरस के आकार का लगभग दो से तीन गुना पाया।