इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि शिक्षकों की ड्यूटी तभी लगे, जब अन्य सरकारी और अर्ध सरकारी कर्मियों की सभी श्रेणियां समाप्त हो जाएं।
कोर्ट का कहना है कि शिक्षक की प्राथमिक भूमिका शिक्षा देना है, उन्हें बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के रूप में नियुक्त करना अंतिम उपाय होना चाहिए।
समाज में शिक्षकों की भूमिका को ध्यान में रखते हुए अदालत द्वारा चुनाव ड्यूटी में शिक्षकों की सेवाओं को सीमित किया गया है। इसके लिए कोर्ट ने शिक्षकों के अंधाधुंध तरीके से चुनाव ड्यूटी में लगाए जाने की मनादि की है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि चुनाव के दौरान शिक्षकों की ड्यूटी अंतिम विकल्प के रूप में रखा जाए। आगे आदेश में यह भी कहा गया कि यदि शिक्षकों को तैनात किया जाना है, तो यह केवल छुट्टियों पर या शिक्षण कार्य के बाद होना चाहिए।
अदालत का यह आदेश झांसी के परिषदीय विद्यालय में कार्यरत शिक्षक सूर्य प्रताप सिंह व कई अन्य जिलों के शिक्षकों की याचिका पर दिया है। मामले पर फैसला न्यायमूर्ति अजय भनोट ने दिया।
गौरतलब है कि प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक सूर्य प्रताप सिंह ने याचिका दाखिल कर 16 अगस्त 2024 के आदेश द्वारा बूथ लेवल अधिकारी के रूप में अपनी नियुक्ति को चुनौती दी थी। याचिकाकरता का कहना था कि उनका चुनाव में कार्य मतदाता सूची में संशोधन करना शामिल था, यह लगातार चलने वाला काम है और यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता के वकील एमसी त्रिपाठी का कहना था कि शिक्षकों की चुनाव ड्यूटी लगाना गलत है। मामले में बीएसए झांसी के अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने अपने तर्क में कहा कि केंद्रीय चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के तहत शिक्षकों की बीएलओ के रूप में ड्यूटी लगाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि उनकी ड्यूटी शिक्षण कार्य में बाधा नहीं डालेगी।
सुनवाई पर अदालत का कहना था कि शिक्षा किसी राष्ट्र की स्वतंत्रता की रक्षा और आर्थिक समृद्धि का इंजन है। यह केवल कक्षा में दी जाने वाली किताबी शिक्षा नहीं है, बल्कि मानव विकास की एक समग्र प्रक्रिया है। कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों की चुनाव कार्य में ड्यूटी लगाई जा सकती है लेकिन यह ड्यूटी अंतिम उपाय के रूप में होनी चाहिए।
अपने आदेश में अदालत ने यह भी कहा कि शिक्षकों को तब तक बीएलओ के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए, जब तक अन्य सभी सरकारी कर्मचारियों (जैसे पटवारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और क्लर्क) की सभी श्रेणियां समाप्त न हो जाएं।
आगे आदेश में यह भी कहा गया कि यदि शिक्षकों को तैनात किया जाना है, तो यह केवल छुट्टियों पर या शिक्षण कार्य के बाद होना चाहिए। अदालत द्वारा यह निर्देश भी दिया गया कि जिला चुनाव अधिकारियों को तीन महीने के भीतर बीएलओ की सूची की समीक्षा और संशोधन करना चाहिए।
कोर्ट का कहना है कि जब तक नए आदेश जारी नहीं किए जाते, तब तक वर्तमान में बीएलओ के रूप में नियुक्त शिक्षकों को स्कूल के घंटों के बाहर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।