राजनीति के अपराधीकरण की निंदा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले के दोषी व्यक्ति के संसद में वापसी पर सवाल उठाया है। साथ ही दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग भी की गई।
एक जनहित याचिका दायर करते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने अदालत में यह सवाल किया। याचिका में देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के अलावा दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।
शीर्ष अदालत ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब तलब किया है। इसके लिए अदालत ने तीन सप्ताह का समय दिया है।
वर्तमान में 42 प्रतिशत मौजूदा लोकसभा सदस्यों पर आपराधिक मामले लंबित हैं। जिनमे कई केस 30 सालों से लंबित हैं।
बेंच को दी गई जानकारी के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में निर्देश पारित किए थे। अदालत ने 10 अलग-अलग राज्यों में 12 विशेष अदालतें स्थापित करने तथा सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे की निगरानी के लिए कई निर्देश पारित किए गए।
बताते चलें कि यह मामला जस्टिस दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ के समक्ष आया जिसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 पर जोर देते हुए बेंच का कहना था कि भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठाहीनता का दोषी पाया जाने वाला सरकारी कर्मचारी व्यक्ति के रूप में भी सेवा के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता।
इस मुद्दे पर पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से निर्णय लेने में मदद करने की बात कही है। सुनवाई के दौरान पीठ का कहना था कि, जब एक बार जब कोई राजनेता दोषी ठहराया जाता है और दोषसिद्धि बरकरार रहे, तो लोग संसद और विधानमंडल में कैसे वापस कर सकते हैं? कोर्ट ने इस पर जवाब माँगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया ने इस मामले में अपनी बात रखते हुए कई तर्क पेश किए। उनका कहना था कि समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों और हाई कोर्ट द्वारा निगरानी के बावजूद, सांसदों के खिलाफ बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं। हंसरिया ने इसे शर्मनाक बताया कि इतना कुछ होने के बावजूद 42 प्रतिशत मौजूदा लोकसभा सदस्यों पर आपराधिक मामले लंबित हैं। अगली जानकारी में उन्होंने बताया कि 30 सालों से इस तरह के केस लंबित हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने उपाध्याय का प्रतिनिधित्व करते हुए अपनी दलील में कहा कि सांसदों का कभी यह इरादा नहीं था कि बलात्कार या हत्या जैसे जघन्य अपराधों में दोषी ठहराए गए और दो से तीन साल की छोटी सजा के बाद रिहा किए गए व्यक्ति को सांसद या विधायक के रूप में चुना जाए।
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मुद्दे को बड़ी पीठ द्वारा विचार के लिए सीजेआई संजीव खन्ना के समक्ष रखने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने मामले पर विचार के लिए 4 मार्च की अगली तारीख तय की है।