सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एक मामले में स्पष्ट किया है कि नोटिस भेजने के 24 घंटे के भीतर किसी मकान को ढहाना गलत है। यूपी के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों को भूखंड पर दावा न करने का शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश भी दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि मालिकों को अपील करने का समय दिए बगैर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई। अदालत ने नोटिस देने के 24 घंटे के भीतर मकान गिराने को गलत बताते हुए उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को फटकार लगाई।
जस्टिस ओका का कहना था कि राज्य को अपील दायर करने का उचित समय देना चाहिए था। आगे उन्होंने पुनर्निर्माण करने की अनुमति देने की बात कही। उनका कहना था कि जिस तरह से नोटिस के 24 घंटे में यह किया, उससे न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। केवल अंतिम नोटिस कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त विधि, पंजीकृत डाक के माध्यम से दिया गया था। कोर्ट ऐसी प्रक्रिया बर्दाश्त नहीं कर सकता। यदि हम एक मामले में बर्दाश्त करते हैं, तो यह जारी रहेगा। इस मामले में जो किया, राज्य को उसका समर्थन नहीं करना चाहिए।
साथ ही शीर्ष अदालत का कहना है कि वह प्रयागराज के याचिकाकर्ताओं एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य लोगों को सशर्त उनके खर्चे पर पुनर्निर्माण की अनुमति देगा।
मामले में याचिकाकर्ताओं वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और दो विधवा महिलाऊँ सहित एक अन्य व्यक्ति ने शीर्ष अदालत को बताया कि उन्हें 6 मार्च, 2021 को नोटिस दिया और 7 मार्च, 2021 को घर गिरा दिए गए।
इस घटना के बाद यह लोग इलाहाबाद हाईकोर्ट गए, लेकिन ध्वस्तीकरण के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी गई। तब याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने अपने तर्क में यह भी कहा कि राज्य ने गलत तरीके से उनकी जमीन को गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद से जोड़ दिया है।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने याचिकाकर्ताओं को शपथपत्र दाखिल करने का समय देते हुए कहा कि अगर वे संबंधित प्राधिकरण के समक्ष तय समय में अपील करने का शपथपत्र देते हैं, तो वह उन्हें दोबारा घर बनाने की अनुमति होगी। इसका खर्चा उन्हें उठाना होगा। उन्हें शपथपत्र में लिखना होगा, वे भूखंड पर किसी भी तरह का दावा और किसी तीसरे पक्ष के हितों की बात नहीं करेंगे। पीठ ने यह भी कहा, अगर उनकी अपील खारिज हो जाती है, तो याचिकाकर्ताओं को अपने खर्चे पर घरों को ध्वस्त भी करना होगा। याचिकाकर्ताओं को शपथपत्र दाखिल करने का समय देते हुए पीठ ने सुनवाई स्थगित कर दी।