सुप्रीम कोर्ट ने कथित रूप से धोखाधड़ी किए गए धन को जमा करके जमानत पाने की प्रवत्ति को अस्वीकार करते हुए इसे गलत धरना कायम करने वाला बनाया है।
मंगलवार को शीर्ष अदालत ने वर्षों से चल रही उस ‘अशांतिपूर्ण प्रवृत्ति’ को अस्वीकार करार दिया, जिसके तहत अदालत धोखाधड़ी के मामलों में आरोपियों को गिरफ्तारी से पहले जमानत की शर्त के रूप में पैसे जमा करने के लिए कहती है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट की पीठ का कहना है कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत जमानत की अर्जी पर सुनवाई के लिए अदालतों को विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में कानून को भी आधिकारिक तौर पर निर्धारित किया है।
जस्टिस भट्ट एवं जस्टिस दत्ता की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 438 के तहत जमानत की अर्जी पर सुनवाई के लिए अदालतों को विवेक का इस्तेमाल किये जाने की बात कही। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कानून को और भी आधिकारिक तौर पर निर्धारित किया है। पीठ ने का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में सामने आने वाली और हाल के दिनों में तेजी से बढ़ी इस चिंताजनक प्रवृत्ति के कारण ऐसे मामले से निपटना जरूरी हो गया है।
निजी धोखाधड़ी के मामलों में सिर्फ इस आधार पर ज़मानत न दें कि आरोपी ने रुपए जमा करने का वादा किया है : सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों से कहा #IPC420 #SupremeCourt https://t.co/yNgn2C3zkA
— Live Law Hindi (@LivelawH) July 4, 2023
पीठ का कहना है कि बीते कुछ माह में कई मामलों में देखा गया है कि आईपीसी की धारा 420 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने पर धोखाधड़ी के आरोपी व्यक्तियों की ओर से सीआरपीसी की धारा 438 के तहत न्यायिक कार्यवाही शुरू की जाती है। अनजाने में ये कथित तौर पर धोखाधड़ी की रकम वसूलने की प्रक्रियाओं में तब्दील हो रहे हैं। अदालतों को अग्रिम जमानत देने के लिए पूर्व-आवश्यकता के रूप में उस रकम के भुगतान की शर्तें लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। पीठ ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 438 हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय को ऐसी शर्तें लगाने का अधिकार देता है।