बाबरी मस्जिद/राम मंदिर विवाद पर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के अधिकारों को चेलैंज करते हुए उत्तर प्रदेश शिया सैंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दाख़िल किया है।
वक़्फ़ बोर्ड ने अदालत से कहा है कि “बेहतर होगा अयोध्या में मस्जिद और मंदिर एक दूसरे के निकट तामीर न किए जाएं”। इसी के साथ अदालत को यह भी सुझाव दिया गया है कि “मस्जिद को पुरूषोत्तम श्री राम के जन्म स्थल से मुनासिब दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाक़े में तामीर किया जाए”।
यह हलफ़नामा शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन सैय्यद वसीम रिज़वी ने अदालत में दाख़िल किया है। रिज़वी ने कहा है कि “उन्हें दृढ़ विश्वास है कि शिया वक़्फ़ बोर्ड की कोशिशों से इस विवाद का दोस्ताना समाधान निकल आएगा”।
शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन ने दावा किया है कि “बाबरी मस्जिद शिया वक़्फ़ से संबंधित थी और इसका सुन्नी वक़्फ़ से कोई लेना देना नहीं था। मस्जिद के दस्तावेज़ों से साबित होता है कि इस मस्जिद को मीर बाक़ी ने तामीर करवाया, जो एक शिया थे। मस्जिद का आख़री मुतवल्ली भी एक शिया था। इसलिए सिर्फ़ शिया वक़्फ़ बोर्ड ही इस बारे में फ़ैसला ले सकता है”।
ग़ौरतलब है कि शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन ने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफ़नामा ऐसे वक़्त में दाख़िल किया है, जब अदालत इस विवाद से संबंधित इलाहबाद हाइकोर्ट के फ़ैसले पर सुनवाई शुरू करने जा रही है। हाईकोर्ट ने बाबरी मस्जिद की ज़मीन को राम लला, निरमोही अखाड़ा और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के बीच में बांटने का फ़ैसला सुनाया था। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी, जिसकी सुनवाई 11 अगस्त 2017 से शुरू होने जा रही है।
शिया वक़्फ़ बोर्ड के हलफ़नामे के बारे में क़ानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी कोई क़ानूनी हैसियत नहीं है, हालांकि इससे मस्जिद/मंदिर विवाद और जटिल हो सकता है और मस्जिद के बारे में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का दावा कुछ कमज़ोर पड़ सकता है।
आल इंडिया मुस्लिम पर्नल लॉ बोर्ड और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील ज़फ़रयाब जीलानी का कहना है कि “वर्ष 1936 के वक़्फ़ क़ानून और 1941 से 1945 के बीच वक़्फ़ प्रोपर्टीज़ के सर्वे के मुताबिक़, बाबरी मस्जिद की ज़मीन सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड से संबंधित है”।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, शिया वक़्फ़ बोर्ड यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार के हाथों में खेल रहा है और यह हलफ़नामा इसी का नतीजा है।
इस बीच, शिया समुदाय और शिया धर्मगुरूओं ने यूपी शिया वक़्फ़ बोर्ड के इस क़दम की कड़े शब्दों में निंदा की है।
देश में शिया धर्मगुरूओं के प्रमुख संगठन मजलिसे ओलमाए हिंद ने एक बयान जारी करके इसे शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने और फूट डालने की एक साज़िश बताया है।
मजलिसे ओलमाए हिंद ने की निंदा
मजलिसे ओलमाए हिंद के बयान में कहा गया है कि “शिया वक़्फ़ बोर्ड के इस हलफ़नामे में कई विरोधाभास पाए जाते हैं। मस्जिद अल्लाह की इबादत का एक पवित्र स्थल होती है और यह शिया या सुन्नियों की संपत्ति नहीं होती। हां, केयर-टेकर या मुतवल्ली शिया या सुन्नी हो सकते हैं”।
शिया धर्मगुरूओं का कहना है कि “जांच एजेंसियों ने शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन को वक़्फ़ संपत्तियों को अवैध रूप से बेचने और वित्तीय घोटाले में लिप्त पाया है, इसलिए वह अपने अपराधों पर पर्दा डालने और सज़ा से बचने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं”।