नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सरकार को लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट 2013 को उसके मौजूदा रूप में ही लागू करना चाहिए। इसे रोककर रखने का कोई तर्क समझ नहीं आता। एक्ट के मुताबिक, लोकसभा में विपक्ष का नेता लोकपाल सिलेक्शन पैनल में रहेगा। मौजूदा स्थिति में लोकसभा में विपक्ष का नेता ही नहीं है।
जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा ने पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा, “लोकायुक्त कानून व्यवहारिक है और इसे लटकाकर रखने की वजह समझ से परे है।” सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च को अपना पहले का फैसला पलटते हुए देश में लोकपाल के अप्वाइंटमेंट की बात कही थी। सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण एनजीओ कॉमन कॉज की तरफ से कोर्ट में पेश हुए थे। उन्होंने कहा था, “2013 में संसद ने लोकपाल बिल पास कर दिया था और 2014 में ये प्रभाव में आया। सरकार जानबूझकर लोकपाल को अप्वाइंट नहीं कर रही है।”
सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि मौजूदा स्थिति में लोकपाल को अप्वाइंट नहीं किया जा सकता। क्योंकि विपक्ष के नेता की नियुक्ति को लेकर संसद में मामला लंबित है। 23 नवंबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल के अप्वाइंटमेंट में देरी को लेकर केंद्र को फटकार लगाई थी। साथ ही कहा था कानून को एक डेड लेटर बनाने की परमिशन नहीं दी जा सकती।
बता दें कि मौजूदा लोकसभा में 545 सीटों में से कांग्रेस के महज 45 सांसद हैं। ये कुल सांसदों का 10% (54) नहीं है। इस स्थिति में लोकपाल एक्ट में बदलाव की मांग की जा रही है। NGO कॉमन कॉज ने एक्ट के बदले नियमों के तहत लोकपाल का चेयरपर्सन और मेंबर्स के अप्वाइंटमेंट की बात कही थी। एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कॉमन कॉज की तरफ से पिटीशन दायर की थी। पिटीशन में ये भी कहा गया था कि सरकार चेयरपर्सन और मेंबर्स की नियुक्ति में ट्रांसपेरेंसी बरते।