इस आग से मुसलमानों के पहले क़िब्ला और मुसलमानों व ईसाइयों के लिए अत्याधिक पवित्र स्थल मस्जिदुल अक़्सा को भारी नुक़सान पहुंचा और इस घटना पर पूरी दुनिया के मुसलमानों में आक्रोश फैल गया।
इस्राईल ने मस्जिदुल अक्सा में आग लगाये जाने के लिए ऑस्ट्रेलिया के एक पर्यटक को ज़िम्मेदार बताया। इस्राईली अदालत ने भी उस पर दिखावटी मुक़द्दमे के दौरान कहा कि इस पर्यटक ने जिस समय यह अपराध किया वह मानसिक रोगी था और इस्राईल के आंतरिक कानून के अनुसार उसे दंडित नहीं किया जा सकता।
मस्जिदुल अक़्सा में आग लगाए जाने की घटना को 49 वर्ष गुज़र गये लेकिन इस्लामी जगत के अत्याधिक पवित्र स्थल पर लगने वाला यह घाव न केवल यह कि अभी भरा नहीं बल्कि उसके बाद घाव पर घाव लगते गये और एक अरब से अधिक मुसलमान, मूक दर्शक बने हुए हैं।
7 जूलाई सन 1967 , मस्जिदुल अक़्सा पर क़ब्ज़ा कर लिया गया।
21 अगस्त सन 1969 डेनिस माइकल रोहन ने मस्जिदुल अक़्सा को आग लगा दी
11 अप्रैल 1982 को एक इस्राईली सैनिकों ने मस्जिदुल अक़्सा के भीतर फायरिंग कर दी जिसमें छो फिलिस्तीनी शहीद हो गये और छे अन्य घायल हो गये।
10 अक्तूबर सन 1990 को मस्जिदुल अक़्सा में अत्याधिक भयानक अपराध किया गया। एक चरमपंथी यहूदी गुट ने सुलैमान उपासना स्थल की आधार शिला रखने के लिए मस्जिद में ज़बरदस्ती घुसना चाहा किंतु नमाज़ियों दारा रोके जाने पर इस्राईली सैनिकों ने उन पर फायरिंग कर दी जिसमें 20 फिलिस्तीनी शहीद और 115 घायल हो गये।
25 सितंबर सन 1996 में मस्जिदुल अक़्सा की पश्चिमी दीवार के नीचे एक सुरंग का उदघाटन किया गया जिसके बाद झड़पें आरंभ हो गयीं जिनमें 63 फिलिस्तीनी शहीद हो गये और 1600 से अधिक घायल हुए।
28 सितंबर 2000 को भूतपूर्व ज़ायानी प्रधानमंत्री एरियल शेरून मस्जिदुल अक़्सा में घुसे जिसके बाद दूसरा इंतेफ़ाज़ा आंदोलन भड़क उठा।
20 अगस्त सन 2003 को इस्राईली पुलिस ने फिलिस्तीन के वक़्फ बोर्ड क विरोध के बावजूद यहूदी कालोनी में रहने वालो के लिए मस्जिदुल अक्सा के द्वार खोल दिये।
7 फरवरी सन 2007 को मस्जिदुल अक्सा में यहूदी कालोनियों के रहने वालों के प्रवेश को आसान बनाने के लिए ” तल्लतुल मगारेबा” नामक स्थल तबाह कर दिया गया जिस पर व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए।
3 जून सन 2014 में यहूदी कालोनियों के निवासियों के प्रवेश पर आपत्ति करने वाले 30 से अधिक नमाज़ियों को मस्जिदुल अक़्सा के भीतर घायल कर दिया गया।
13 नवंबर 2014 में जार्डन नरेश, जान केरी और नेतेन्याहू के मध्य संयुक्त बैठक में मस्जिदुल अक्सा में शांति स्थापना पर चर्चा हुई
9 सितम्बर 2015 इस्राईली युद्ध मंत्री मूशे यालून ने मस्जिदुल अक़्सा के रक्षकों के सम्मेलन पर प्रतिबंध लगा दिया।
13 सितम्बर 2015 को ज़ायोनियों ने मस्जिदुल अक़्सा पर फिर धावा बोला जिसके बाद झड़पें हुईं और अन्तंतः तीसरा इन्तेफाज़ा आंदोलन आरंभ हो गया।
14 जूलाई सन 2017 को मस्जिदुल अक़्सा को बंद करके उस में नमाज़ पढ़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया और यह प्रतिबंध दो महीनों तक जारी रहा और इसके अलावा मस्जिद में इलेक्ट्रानिक गेट भी लगा दिया गया किंतु फिलिस्तीनियों के व्यापक विरोध के बाद गेट हटा लिया गया।
27 जूलाई 2017 इलेक्ट्रानिक गेट हटाने की खुशी मनाने मस्जिदुल अक्सा में एकत्रित होने वाले फिलिसतीनियों पर इस्राईली सैनिकों ने हमला कर दिया।
13 मई सन 2018 तेलअबीव से अमरीकी दूतावास के बैतुलमुकद्दस स्थनांतरण के एक दिन पहले डेढ़ हज़ार से अधिक ज़ायोनियों नें मस्जिद अक्सा पर हमला कर दिया।
21 अगस्त सन 1969 में फिलिस्तीन में स्थित मस्जिदे अक्सा में आग की घटना से, मुसलमानों के पहले क़िब्ले को काफी नुक़सान पहुंचा था। आग से पवित्र मेहराब जल गया था और सलाहुद्दीन अय्यूबी का मेंबर जो लकड़ी से बनी विशेष प्रकार की एक दुर्लभ कुर्सी थी जल पर राख हो गया। इस कुर्सी को बिना कीलों और गोंद के बनाया गया था।
इस्लामी सभ्यता में मेंबर उस विशेष प्रकार के आसन को कहते हैं जिस पर पैगम्बरे इस्लाम और उनके बाद इस्लामी शासक मस्जिदों में बैठा करते थे।
इस विशेष प्रकार के मेंबर को नूरुद्दीन ज़ंगी ने बनाया था। यह उस समय की बात है जब मस्जिद अक्सा पर ईसाइयों का क़ब्ज़ा था और नूरूद्दीन जंगी ने यह सोच कर बनाया था कि जब मस्जिद अक्सा स्वतंत्र होगी तो वह यह मेंबर उसमें रखेंगे किंतु मस्जिद अक़्सा की स्वतंत्रता से पूर्व ही उनका देहान्त हो गया जब क्रूसेड युद्ध में सलाहुद्दीन अय्यूबी ने ईसाई सेना को पराजित करके बैतुल मुक़द्दस से बाहर निकाला तो यह मेंबर मस्जिद अक्सा में लाकर रख दिया।
21 अगस्त 1969 में आग की घटना में मस्जिद और उसके बगल में स्थित ज़करिया मेहराब भी जल गया। आग से मस्जिद अक्सा के कई खंबे, विभिन्न प्रकार की प्राचीन डिज़ाइनों से सजी छत और दीवारें गिर गयीं और इस्लामी शिल्पकला का नमूना समझी जाने वाली लकड़ी की 48 खिड़कियां राख हो गयीं।
आग इस लिए भी विकराल रूप धारण कर गयी क्योंकि जब मस्जिद अक्सा में आग लगी थी तो इस्राईल के स्थानीय प्रशासन ने क्षेत्र में पानी सप्लाई बंद कर दी थी और फायर ब्रिगेड भी काफी देर से पहुंचा था।
इस्राईल के स्थानीय प्रशासन की ओर से फायर ब्रिगेड उस समय पहुंचा जब रामल्लाह और अलखलील जैसे अरब बाहुल्य क्षेत्रों से फिलिस्तीनियों के फायर ब्रिगेड पहुंचकर आग बुझाने में व्यस्त हो चुके थे।
21 अगस्त 1969 में जब चरमपंथी यहूदी डेनिस माइकल ने मस्जिदे अक़सा को आग लगाई थी तो पूरी इस्लामी दुनिया में इस पर तीखी प्रतिक्रिया सामने आयी थी और विभिन्न देशों में जबरदस्त प्रदर्शन हुए थे और इसी घटना के कारण, इस्लामी सहयोग संगठन, ओआईसी अस्तित्व में आया जिसके सभी इस्लामी देश सदस्य हैं मगर आज ओआईसी को सऊदी अरब, अन्य इस्लामी देशों के खिलाफ हथियार के रूप में प्रयोग करता है और इस्राईल से दोस्ती बढ़ाने के लिए लालायित रहता है।