सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ए एम खानविलकर ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील 64 करोड़ रुपए के बोफोर्स भुगतान मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया। न्यायमूर्ति खानविलकर, प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ का हिस्सा थे। उन्होंने मामले की सुनवाई से अलग रहने का विकल्प चुनने का कोई कारण नहीं बताया।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 31 मई 2005 को फैसला सुनाते हुए मामले के सभी आरोपियों के खिलाफ सभी आरोप खारिज कर दिए थे। भाजपा नेता अजय अग्रवाल ने अदालत के इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई इस पीठ को करनी थी।
भारत और स्वीडन की हथियारों का निर्माण करने वाली एबी बोफोर्स के बीच सेना के लिए 155 एमएम की 400 हाविट्जर तोपों की आपूर्ति के बारे में 24 मार्च, 1986 में 1437 करोड़ रुपये का करार हुआ था। इसके कुछ समय बाद ही 16 अप्रैल, 1987 को स्वीडिश रेडियो ने दावा किया था कि इस सौदे में बोफोर्स कंपनी ने भारत के शीर्ष राजनीतिकों और रक्षाकार्मिकों को दलाली दी।
इस मामले में 22 जनवरी, 1990 को सीबीआई ने एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्दबो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ प्राथिमकी दर्ज की थी। इस मामले में जांच ब्यूरो ने 22 अक्तूबर, 1999 को चड्ढा, ओतावियो क्वोत्रोक्कि, तत्कालीन रक्षा सचिव एस के भटनागर, आर्दबो और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ पहला आरोप पत्र दायर किया था।