इसरो और नासा मिलकर एक मिशन पर काम कर रहे हैं। इसे ‘निसार’ नाम दिया गया है। इस मिशन का मक़सद पृथ्वी की बदलती स्थिति के बारे में विस्तृत अध्ययन किया जाना बताया जा रहा है।
निसार का पूरा नाम ‘नासा इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार’ उपग्रह है। दरअसल इसे पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाना है। इस तरह यह एक लो अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट होगा। भारत के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र जीएसएलवी से निसार मिशन को लॉन्च किया जाएगा।
गौरतलब है कि नासा यानी अमरीकी स्पेस एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने इसरो यानी भारत की स्पेस एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के साथ मिलकर कई सफल अंतरिक्ष मिशन पूरे किए हैं। लॉन्च के बाद पहले 90 दिनों में उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया जाएगा और फिर उसकी प्रणालियों को चालू किया जाएगा।
यह दोनों स्पेस एजेंसी एक संयुक्त प्रोजेक्ट के तहत काम कर रही है। इके सहयोग से तैयार उपग्रह धरती का मानचित्र तैयार करेगा और इसमें हो रहे भौगोलिक बदलावों को रिकॉर्ड करेगा। ये रिकॉर्डिंग हर 12 दिन में दो बार की जाएगी।
इस रिकॉर्डिंग में धरती की सतह पर जमी हुई बर्फ के अलावा ज़मीनी भाग, पर्यावरण में होने वाले बदलाव, समुद्री जलस्तर में होने वाले बदलाव तथा भूजल स्तर से जुड़े आंकड़े जमा किए जाएंगे। इस मिशन से सूनामी और भूकंप से लेकर ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी अध्ययन किया जाएगा, ताकि ऐसी स्थिति में प्रतिक्रिया को लेकर मदद मिल सके।
नासा के अनुसार उसके और इसरो के मध्य पृथ्वी के अध्ययन से संबंधित मिशन को लेकर निसार पहला स्पेस हार्डवेयर सहयोग है। नासा के चार्ल्स बोल्डन और इसरो के तत्कालीन चेयरमैन के राधाकृष्णन ने 30 सितंबर 2014 को ‘निसार’ मिशन को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
इसके लिए निसार यानी ‘नासा इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार’ एक ख़ास तकनीक का प्रयोग कर रहा है। एसएआर यानी सिंथेटिक एपर्चर रडार का इस्तेमाल किया जाएगा। इसकी मदद से रडार सिस्टम के सहयोग से बेहद अच्छी रिज़ोल्यूशन की तस्वीरें बनान मुमकिन होगा।
रडार को इसके लिए एक सीधी लकीर पर आगे बढ़ाना होगा और ये काम इस प्रोजेक्ट के तहत निसार उपग्रह की मदद से होगा। ‘निसार’ मिशन को लेकर इसरो और नासा ने 30 सितंबर 2014 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस मिशन को 2024 की शुरुआत में ही लॉन्च किया जाना था, मगर सेटेलाइट को बनाने में आ रही मुश्किलों के चलते ऐसा नहीं हो सका।
सरकार द्वारा दिसंबर 2024 में दी गई जानकारी के मुताबिक़ नासा के विशेषज्ञों ने निर्धारित किया कि 12 मीटर के रडार एंटीना रिफ्लेक्टर में कुछ सुधार किए जाने की आवश्यकता है और इसके लिए उसे अमरीका ले जाना होगा।
सेटेलाइट के कुछ भाग अमरीका में तैयार किए जाने के बाद भारत भेजा गया है। अक्तूबर में ये एंटीना नासा भेजा गया था, जिसके बाद इसे लेकर परीक्षण शुरू किए गए।
ये दोनों उपकरण इसरो बना रहा है। नासा द्वारा जानकारी के अनुसार इस उपग्रह में दो रडार उपकरण होंगे, एल बैंड एसएआर और एस बैंड एसएआर। इसरो इसके लिए उपग्रह प्रक्षेपण प्रणाली और प्रक्षेपण के लिए अन्य चीजों का ध्यान भी रख रहा है।