अरब के लोग भारतीयों से नाराज हैं। अरब पृष्ठभूमि के लोग जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार और शाही परिवार से जुड़े लोग शामिल हैं, ये ट्विटर पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। दरअसल ये लोग भारत में जिस तरह इस्लामोफोबिया फैलाने या मुस्लिम विरोधी कैंपेन जो कोरोना को फैलाने के लेकर सोशल मीडिया पर चल रहा है इसे नोटिस करते हुए ट्वीट कर रहे हैं या ये कहें कि प्रतिक्रिया जाहिर की है। वहीँ कुवैती के वकील ने संयुक्त राष्ट्र से भी हस्तक्षेप करने और बढ़ते उत्पीड़न को रोकने की मांग की है।
हालांकि इससे पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया कि भारत में मुसलमानों के साथ कथित गैर-बराबरी को लेकर प्रतिक्रिया दी हो। भारत में मुस्लिम विरोधी राजनीति कोई नई बात नहीं है। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि अरब के लोग भारतीयों से नाराज हैं।
We call on international organizations, especially the United Nations, the Security Council, the Organization of islamic cooperation and all human rights organizations, to intervene immediately to stop the violations committed against our Muslim brothers in India #India
— خالد السويفان (@alsuwaifan) April 20, 2020
संयुक्त अरब अमीरात के सोशल मीडिया पर भारत में मुसलमानों के साथ कथित गैर-बराबरी को लेकर चल रही बहस के बीच भारत के केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का भी मंगलवार को बड़ा बयान आया था। नकवी ने कहा, ‘मुसलमानों के लिए भारत स्वर्ग जैसा है जहां उनके अधिकार सुरक्षित हैं।’
साथ ही उन्होंने यह भी कहा “एक बात साफ है, धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव भारतवासियों के लिए फैशन नहीं, बल्कि जुनून है। यह हमारे देश की ताकत है। इसी ताकत ने देश के अल्पसंख्यकों सहित सभी लोगों के धार्मिक, सामाजिक अधिकार सुरक्षित हैं।”
Humanitarian crimes in India against our Muslim brothers violate the most basic principles of humanity and are contrary to the Universal Declaration of Human Rights Articles 25,7,12,18 which was adopted by the United Nations and India is one of its founding members #lndia #Indian
— المحامي د.يوسف زيد العنزي (@yzd_lawyer) April 21, 2020
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री नकवी से पहले यूएई में भारत के राजदूत पवन कूपर ने भी एक ट्वीट में लिखा था कि “भारत और यूएई किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करने का विचार साझा करते हैं। भेदभाव हमारे नैतिक ढांचे और कानून व्यवस्था के खिलाफ है। यूएई में मौजूद भारतीय हमेशा इस बात को याद रखें।”
संयुक्त अरब अमीरात के सोशल मीडिया पर अगर गौर करें तो बहुत सारी पुरानी चीजें खंगालकर निकाली गई हैं जिन्हें अब शेयर किया जा रहा है और यह दावा किया जा रहा है कि ‘भारत में मुसलमानों के साथ बुरा बर्ताव होता है।’
19 अप्रैल के दुबई में रहने वाली एक व्यापारी महिला नूरा अल-घुरैर और कुवैत के सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुर्रहमान नासर ने भारत के लोकसभा सांसद तेजस्वी सूर्या के एक विवादित ट्वीट को शेयर किया था जो अब संयुक्त अरब अमीरात में सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। ये विवादित ट्वीट हालांकि पांच साल पुराना है और बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या इस ट्वीट को डिलीट कर चुके हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर अब इसका इस्तेमाल भारत सरकार के नजरिए पर सवाल उठाने के लिए हो रहा है।
सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया आ रही है। ट्विटर पर अब्दुर्रहमान नासर ने लिखा है, “कुवैत में भारतीय समुदाय के लोग कोरोना संक्रमण के मामले में सबसे ऊपर हैं, लेकिन यहां के सबसे बढिय़ा अस्पतालों में उनका इलाज चल रहा है, क्योंकि कुवैत में धर्म और नागरिकता के आधार पर लोगों में अंतर करने का रिवाज नहीं है।”
यह विवाद कैसे शुरु हुआ पहले इसको जानते हैं। करीब एक सप्ताह पहले सौरभ उपाध्याय नाम के एक ट्विटर यूजर के स्क्रीनशॉट संयुक्त अरब अमीरात में सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हुआ। सौरभ के ट्विटर प्रोफाइल के अनुसार (जो अब बंद हो चुकी है) वे एक पॉलीटिकल कैंपेन मैनेजर हैं और उनकी लोकेशन दुबई बताई गई थी।
दुबई के कई यूजर्स ने सोशल मीडिया पर पुलिस को टैग करते हुए लिखा कि ‘सौरभ हिंदू-मुस्लिम एजेंडा चला रहे हैं और भड़काऊ सामग्री परोस रहे है।’ इसी क्रम में यूएई में रह रहे कुछ अन्य भारतीयों की भी ट्विटर के जरिए पुलिस से शिकायत की गई जो भारत में कोरोना वायरस फैलने की वजह मुसलमानों को मानकर अपनी भड़ास निकाल रहे थे।
इस दौरान सौरभ उपाध्याय का एक और ट्वीट का स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है जिसमें लिखा है, “मध्य-पूर्व के देश जो कुछ भी हैं वो हम भारतीयों की वजह से हैं जिसमें 80 फीसदी हिंदू हैं। हमने कूड़े के ढेर से दुबई जैसे शहरों को खड़ा किया है और इस बात का मान यहां का शाही परिवार भी करता है।” स्क्रीनशॉट्स के मुताबिक इससे पहले सौरभ ने लिखा था कि “मुसलमान दुनिया से 1400 साल पीछे जी रहे हैं।” सौरभ के इस ट्वीट पर कुछ लोगों ने आपत्ति जतायी तो उसने चुनौती दी।
तो क्या इस वजह से यूएई में भारत के राजदूत और केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री नकवी को इस वजह से सफाई नहीं पड़ी। जी नहीं, सफाई देने की वजह शाही परिवार की इस मामले में आपत्ति थी।
राजकुमारी ने यह भी लिखा, “शाही परिवार बेशक भारतीय लोगों को दोस्त मानता है, लेकिन किसी की बेअदबी का स्वागत नहीं किया जा सकता। यूएई में बहुत से लोग अपनी रोजी-रोटी कमाने आये हैं, पर अगर आप इस जमीन को ही कोसने लगेंगे, तो यहा आपके लिए कोई जगह नहीं है।”
राजकुमारी के ट्वीट के बाद बढ़ते विवाद को देखते हुए भारत को आगे आना पड़ा। इसकी बड़ी वजह यह है कि यूएई में बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय रहते हैं। संयुक्त अरब अमीरात के 2017 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार वहां 34 लाख 20 हजार से ज़्यादा प्रवासी भारतीय रहते हैं। ये संख्या यूएई की कुल आबादी का करीब 27 प्रतिशत है।
जानकारों का कहना है कि संयुक्त अरब अमीरात में रहने वाले लाखों भारतीयों में हिंदुओं की संख्या सबसे ज़्यादा है। मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वालों को शायद इस बात का अंदाजा नहीं है कि अगर खाड़ी देशों में ऐसी प्रतिक्रिया होने लगी तो वहां काम धंधा कर रहे भारतीयों को कितनी मुसीबत झेलनी पड़ेगी। अब तो यूएई का स्थानीय मीडिया भी अब इस तरह की खबरों को खास तरजीह दे रहा है।
यूएई की मीडिया संस्थान गल्फ न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल के दिनों में मध्य-पूर्व में नौकरी करने वाले जिन भारतीयों ने सोशल मीडिया के जरिए मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश की, उन्हें नौकरी से निकाला गया है। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में शारजाह मे स्थापित एक नामी भारतीय व्यापारी को अनजाने में धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए माफी मांगनी पड़ी थी। उन पर लोगों ने ‘इस्लामोफोबिया’ फैलाने का आरोप लगाया था।
यूएई के कानून के अनुसार ऐसी कोई भी गतिविधि जिसे वहां की सरकार धर्म और देश के सौहार्द्र एवं सम्मान के विरुद्ध पाती है तो ऐसे व्यक्ति को 40 लाख दिरहाम का जुर्माना और जेल की सजा हो सकती है।
हेट स्पीच के मामले में एक शख़्स को सजा दिए जाने की राजकुमारी हेंद अल-कासिमी ने पुष्टि की है। उन्होंने लिखा है, “सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयानबाज़ी करने के मामले में केरल के एक व्यापारी को तो माफ कर दिया गया, पर एक अन्य शख़्स को जेल की सजा हुई है।”
भारत और यूएई के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा
बीते कुछ वर्षों में भारत और यूएई के बीच द्विपक्षीय संबंध पहले की तुलना में काफी गहरे स्थापित हुए हैं और माना जाता है कि दोनों देशों के बीच आतंकवाद का मिलकर मुकाबला करने की एक समझ बनी है।
हालिया घटनाओं के बाद खाड़ी देशों में प्रभावशाली समझे जाने वाले लोगों ने खुलकर ये कहना शुरू किया है कि ‘भारत सरकार अपने यहां मुसलमानों के साथ हो रही गैर-बराबरी पर विचार करे।’ नामी सऊदी स्कॉलर अबीदी जहरानी ने अपील की है कि खाड़ी देशों में काम करने वाले उन कट्टरवादी हिंदुओं की पहचान की जाए जो इस्लाम के खिलाफ नफरत भड़का रहे हैं, और उन्हें वापस उनके देश भेजा जाए।
अबीदी जैसे कुछ विचारकों की इस तरह की अपील के बाद यूएई में बहुत से लोग चुनिंदा भारतीय नौकरीपेशा लोगों के डिटेल ट्विटर और फेसबुक पर शेयर कर रहे हैं जिससे खाड़ी देशों में रह रहे भारतीयों की चिंता बढ़ी है।
वहीं ग्लोबल पार्लियामेंट्री नेटवर्क (जीपीएन) के सदस्य जमाल बहरीन ने संयुक्त राष्ट्र और ओआईसी से भारतीय मुसलमानों के मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में हस्तक्षेप करने की अपील की है। वहीं ओआईसी पहले ही भारत सरकार को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की रक्षा करने के लिए तुरंत जरूरी कदम उठाने के लिए कह चुका है(siasat.com)