नई दिल्ली। भारत संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष देश है। यहां दिन-ब-दिन धार्मिक स्थलों की संख्या में इजाफा हो रहा है। भारत में स्कूल-कॉलेज से ज्यादा प्रार्थना स्थल हैं। जिसमें मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरिजाघर शामिल हैं। प्रार्थना स्थलों की संख्या स्कूल और कॉलेजों से लगभग 10 लाख ज्यादा है। 2011 की जनगणना के अनुसार 30.1 लाख प्रार्थना स्थल हैं वहीं स्कूल-कॉलेजों की संख्या करीब 20.1 लाख है।
इस संबंध में जारी की गयी रिपोर्ट में कुछ अन्य चौंकाने वाले आंकड़ें भी सामने आए हैं। इसके अनुसार भारत एक घर के अंदर ही दो मुख्य द्वारों का भी चलन है। भारत में ऐसे करीब 3.30 करोड़ घर देखे गए जिनमें बिजनेस या रहने के मकसद से दूसरा दरवाजे के साथ अलग इमारत बनाई गई।
हिमाचल प्रदेश में इनमें से सिर्फ 50 प्रतिशत इमारतें ही रहने के लिए इस्तेमाल हो रही हैं। गोवा में घरों के अंदर ही दूसरा प्रवेश द्वार देकर लॉज या गेस्ट हाउस बनाने का चलन है। वहीं दिल्ली में एक ही इमारत में फैक्ट्री और वर्कशॉप बनाई गई हैं।
जेएनयू में समाजशास्त्र के प्रोफेसर एसएस जोधका कहते हैं कि इसके लिए पूरी तरह से हमारी सामाजिक प्रकिया जिम्मेदार हैं। भारत में पूजा करने की जगह के निर्माण को किसी भी जाति या समूह के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। भारत में प्रत्येक जाति और धर्म के लोग अपना अपना महत्व बताने के लिए प्रार्थना स्थलों का निर्माण करते हैं।