मथुरा 29 जनवरी: उत्तर प्रदेश के मथुरा में कोहरे और गलन वाली ठंढ के बावजूद अनवरत चल रही गिर्राज परिक्रमा ने दिन और रात के अन्तर को समाप्त कर दिया है ।
दानघाटी मन्दिर गोवर्धन के सेवायत आचार्य महेश शर्मा के अनुसार तीर्थयात्रियों का ऐसा व्यवहार कोई नया नही है। कोरोना वायरस के पूर्व गोवर्धन परिक्रमा के लिए इसी प्रकार तीर्थयात्री आ रहे थे।
मान्यता है कि गिर्राज जी कलियुग के सच्चे देवता हैं तथा जो भी व्यक्ति भक्ति भाव एवं पूर्ण समर्पण के साथ उनकी परिक्रमा करता है उसे गिर्राज जी के सामने झोली फैलाने की जरूरत नही पड़ती । यही कारण है एकादशी से पूर्णिमा के बीच तीर्थयात्री गोवर्धन की ओर चुम्बक की तरह खिंचे चले आते हैं।
कोरोना के कारण एक लम्बे समय तक लाखो तीर्थयात्री परिक्रमा करके अपने ठाकुर की आराधना नही कर सके थे । इसलिए तीर्थयात्रियों की संख्या और बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि इस मन्दिर में यशोदा भाव से सेवा होती है। इसलिए यशोदा की भूमिका निभा रहे सेवायत का यह प्रयास होता है कि ठाकुर को शीतलहर में ठंढ़ न लगे। यही कारण है कि ठाकुर को ठंड से बचाने के लिए उनके खान पान और रहन सहन को उसी के अनुरूप बनाया जाता है।
वर्तमान शीतलहरी को देखते हुए ठाकुर के बालभोग से लेकर शयन भोग तक में केशर की मात्रा बढ़ा दी गई है तथा ठाकुर के सामने कोयले की अंगीठी रखी जा रही है। उन्हें केशर का दूध पिलाया जा रहा है तथा तिल और मेवा के लड्डू के साथ साथ सूखी मेवा में काजू , बादाम, पिस्ता और चिलगोजा भी दिया जा रहा है । उन्हें केशर ,कस्तूरी का इत्र भी लगाया जा रहा है । ठाकुर को न केवल सनील की पोशाक धारण कराई जा रही है बल्कि शयन के समय उन्हे ठंढ से बचाने के लिए मखमली उनी कम्बल का प्रयोग किया जा रहा है।