कर्मचारियों के बीच नस्लीय भेदभाव वाले एक मुक़दमे दुनिया की सबसे बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनी ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार करने के साथ समझौते की पुष्टि भी की है।
गूगल ने कर्मचारियों के मध्य नस्लीय भेदभाव वाले इस मुक़दमे को समाप्त करने के लिए 2.8 करोड़ डॉलर का हर्जाना देने की बात को मंजूर कर लिया है। भारतीय करेंसी में यह राशि 242.43 करोड़ रुपये होती है।
यह मामला एक ऐसे समय हुआ है जिस वक़्त अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके सहयोगी डीईआई नीतियों पर लगातार हमला कर रहे हैं।
नस्लवाद का आरोप लगाने वाले वादी की शिकायत है कि गोरे और एशियाई कर्मचारियों के मुकाबले अन्य नस्लीय पृष्ठभूमि के कर्मचारियों को कम अवसर के साथ वेतन भी कम दिया जाता है।
गूगल के प्रवक्ता कोर्टेने मेनसिनी ने मंगलवार को समझौते की पुष्टि की लेकिन कहा- “हम इन आरोपों से असहमत हैं कि हमने किसी के साथ अलग व्यवहार किया, और हम सभी कर्मचारियों को उचित वेतन, नियुक्ति और समान वेतन देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
बताते चलें कि साल 2021 में गूगल की पूर्व कर्मचारी अना कैंटू ने यह मुकदमा दायर किया था। उनका आरोप था कि हिस्पैनिक, लैटिनो, नेटिव अमरीकी और अन्य पृष्ठभूमि के कर्मचारियों ने गोरे और एशियाई मूल के अपने समकक्षों के मुक़ाबले कम तनख्वाहों और निचले पदों पर नौकरी शुरू की।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, यह मुकदमा 15 फ़रवरी 2018 और 31 दिसंबर 2024 के मध्य गूगल द्वारा भर्ती किए गए तकरीबन 6,632 लोगों के लिए दायर किया गया था।
गौरतलब है कि इस वर्ष की शुरुआत में गूगल भी उन अमरीकी कंपनियों में शामिल हो गया है जिन्होंने अपनी भर्ती नीति में डाइवर्सिटी, इक्विटी और इनक्लूजन प्रोग्राम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से किनारा किया है।
इसी क्रम में मेटा, अमेजॉन, मैकडोनाल्ड्स, पेप्सी और वॉलमार्ट जैसी दिग्गज कंपनियां उस सूची में आती है जो डीईआई प्रोग्राम से पीछे हटी हैं।