जोधपुर। बरसाने की बेंतमार होली बारे में तो आपने काफी सुना होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसे उत्सव के बारें में बताने जा रहे हैं जिसके बारें में पहले शायद ही आपने सुना या पढ़ा होगा। यह उत्सव राजस्थान के मारवाड़ प्रान्त में मनाया जाता है। इसे ‘धींगा गवर’ के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव की सबसे अनोखी परंपरा यह है कि यहां लड़कियां कुंवारे लड़कों को दौड़ा-दौड़ाकर डंडे मारती हैं। यहां प्रचलित प्रथा के अनुसार इसमें अगर किसी लड़के के वह डंडा पड़ जाता है तो उसकी शादी होना पक्का समझा जाने लगता है। इस प्रान्त में यह उत्सव बेंतमार गणगौर के रूप में प्रसिद्ध है। girls beating
80-100 वर्ष पहले इस क्षेत्र में एक किवंदती प्रचलित थी कि कोई भी पुरुष धींगा गवर के दर्शन नहीं करता था। दर्शन नहीं करने के पीछे लोगों में यह धारणा थी कि यदि कोई भी धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी। फिर धीरे सुहागिने औरत ‘धींगा गवर’ की पूजा करने लगी। ये औरते आधी रात को हाथ में बेंत या डंडा लेकर गवर के साथ निकलती थी। वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती।
बताया जाता है कि महिलाएं डंडा फटकारते हुए चलती थी ताकि रास्ते में आने वाले पुरुष सावधान हो जाए और गवर के दर्शन करने की बजाय वे किसी गली, घर या चबूतरी की ओट लेकर छुप जाए। कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत (डंडा) की मार पड़ेगी उसका जल्दी ही विवाह हो जाएगा। इसी परंपरा के चलते युवा वर्ग इस मेले में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगा और धीरे इस एरिये में यह उत्सव काफी फेमस हो गया।
आपको बता दें गवर माता को पार्वती का रूप माना जाता है। वहीं ईसर शिव के प्रतीक समझा जाता है। होते हैं। इसका पूजन सुहागिनें अपने इसी जन्म के पति की सुखद दीर्घायु के लिए करती है, जबकि धींगागवर का पूजन अगले जन्म में उत्तम जीवन साथी मिलने की कामना के साथ किया जाता है। धींगा गवर के पूजन में ये भी मान्यता है कि इसी सुहागिनों के साथ साथ कुंवारी कन्याएं और विधवाएं भी कर सकती है। चूंकि पूजा का महात्म्य अगले जन्म के लिए कामना करना होता है, इसलिए कुंवारी कन्याएं भी इसी उद्देश्य से और विधवा महिलाएं भी इस प्रार्थना के साथ पूजा करती हैं।
धींगा गवर की पूजा विशेष रूप से मारवाड़ क्षेत्र में ही की जाती है। जोधपुर, नागौर और बीकानेर में धींगा गवर का उत्सव मनाया जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार ईसर एवं गवर शिव और पार्वती के प्रतीक हैं, जबकि धींगा गवर को ईसर की दूसरी पत्नी के रूप में मान्यता मिली हुई है। किवदंती के अनुसार धींगा गवर मौलिक रूप से एक भीलणी थी, जिसके पति का निधन उसकी यौवनावस्था में ही हो गया था और वो ईसर के नाते आ गई थी। इसलिए धींगा गवर चूंकि विधवा हो गई और उसे ईश्वर की कृपा से पुन: ईसर जैसे पति मिल गए, इसी तथ्य के मद्देनजर विधवाओं को भी इस त्योहार पर पूजन करने की छूट मिल गई थी।