पेरिस: एक नए अध्ययन में पाया गया है कि टाइप 1 मधुमेह के रोगियों के लीवर में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट करके उनका जीवन बढ़ाया जा सकता है।
फ्रांसीसी वैज्ञानिकों के नेतृत्व में एक परीक्षण ने टाइप 1 मधुमेह वाले उन मरीज़ों, जिनका गुर्दे का ट्रांसप्लांट हुआ था, से संबंधित उत्साहजनक परिणाम सामने आए है।
खून में बढ़ी हुई शुगर लेवल के कारण शरीर के अंगों में मौजूद रक्त वाहिकाओं को पहुंचने वाले नुकसान से तक़रीबन एक-तिहाई टाइप 1 वाले शुगर के मरीज़ों को नई किडनी की आवश्यकता होगी। ट्रांसप्लांट कराने वाले कई मरीज़ों को कुछ वर्षों बाद फिर से गुर्दे की विफलता का सामना करना पड़ सकता है।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में यह भी पाया कि आइलेट ट्रांसप्लांट के मरीज़ों को अपनी ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए रेग्युलर इंसुलिन की आवश्यकता 70 प्रतिशत कम होती है।
हालाँकि, डेटा से पता चलता है कि एक नई विधि आइलेट ट्रांसप्लांटेशन किडनी ट्रांसप्लांट के बाद जटिलताओं से बचाते हुए मरीज़ की ज़िंदगी को बढ़ा सकता है।
इस तकनीक में स्टेम डोनर के लीवर से विशेष कोशिकाएं ली जाती हैं, जिन्हें आइलेट्स कहा जाता है। ये कोशिकाएं इंसुलिन का उत्पादन करती हैं। यह अंग लीवर के पास स्थित होता है। टाइप 1 मधुमेह में, प्रतिरक्षा प्रणाली अंग पर हमला करती है, जिससे वह विफल हो जाता है।
इस प्रक्रिया में, आइलेट कोशिकाओं को एक कैथेटर के माध्यम से शुगर पेशेंट के लिवर में ट्रांसफर किया जाता है। लिवर में ट्रांसफर किये जाने के कारण अन्य अंगों की तुलना में बाहरी ऊतकों या कोशिकाओं पर इसकी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कम होती है।
यूरोपियन सोसाइटी फॉर ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन कांग्रेस में प्रस्तुत किए गए नए अध्ययन में 330 ऐसे मरीज़ों को देखा गया था जिनका किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था।
लिली यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में यह भी पाया कि आइलेट ट्रांसप्लांट के मरीज़ों को अपनी ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए रेग्युलर इंसुलिन की आवश्यकता 70 प्रतिशत कम होती है।