गुजरात की पोरबंदर अदालत ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बरी कर दिया है। अदालत का कहना है कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित नहीं कर सका। भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत दर्ज मामले में भट्ट को उनके खिलाफ सबूतों के अभाव के चलते बरी कर दिया गया।
राजकोट के केंद्रीय कारागार में बंद संजीव भट्ट को 1990 में जामनगर में हिरासत में हुई मौत मामले में आजीवन कारावास तथा 1996 में पालनपुर में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए मादक पदार्थ रखने के मामले में 20 साल जेल की सजा सुनाई गई थी।
शनिवार को पोरबंदर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (एसपी) भट्ट को उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत दर्ज मामले में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश पंड्या ने सबूतों की कमी में बरी किया।
अदालत का कहना है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक मंजूरी नहीं ली गई थी, जबकि आरोपी उस समय एक लोक सेवक था।
अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों को साबित नहीं किया जा सका। लगाए गए आरोपों में कहा गया था कि शिकायतकर्ता को अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया गया साथ ही खतरनाक हथियारों का प्रयोग करने के अलावा धमकियां देकर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया गया था।
बताते चलें कि भारतीय दंड संहिता के तहत संजीव भट्ट और कांस्टेबल वजुभाई चाउ पर मामला दर्ज किया गया था। लगाईं गई धारा 330 में अपराध स्वीकार करवाने के लिए चोट पहुंचाना और 324 में खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना है। इस बीच कांस्टेबल वजुभाई की मृत्यु के बाद उसके खिलाफ मामले को खत्म कर दिया गया था।
संजीव भट्ट और कांस्टेबल वजुभाई चाउ के खिलाफ यह मामला नारन जादव नामक व्यक्ति की शिकायत पर दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता का आरोप था कि आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम टाडा और शस्त्र अधिनियम के मामले में अपराध कबूल करवाने के लिए पुलिस हिरासत में उन्हें शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं।