उज्जैन। मध्यप्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे प्रतिवर्ष लगने वाले गधे मेले में इस बार नोटबंदी के कारण खरीद फरोख्त करने वाले व्यापारी कम आये जिससे व्यवसाय प्रभावित हुआ। currency ban
पुराने समय से कुम्हार और धोबी के चिरसंगी तथा बोझ ढोने वाले गधे का मेला पवित्र क्षिप्रा नदी के किनारे परंपरानुसार प्रतिवर्ष कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक लगता है और इस मेले में गधे में जानवरों को अच्छा सजाये जाने के साथ उनकी अच्छी खातिरदारी भी की जाती है।
हालांकि वर्तमान में केवल कुम्हार के चिरसंगी बताये जाते है। इस मेले में महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात एवं मध्यप्रदेश सहित अन्य आसपास के अन्य प्रदेशों से गधे, घोडे और खच्चर खरीद फरोख्त के लिये आते है। इस बार केन्द्र सरकार की नोटबंदी से यह व्यवसाय काफी प्रभावित हुआ है।
अखिल भारतीय प्रजापति कुंभकार महासंघ के संगठन मंत्री छगन लाल चक्रवर्ती ने बताया कि इस वर्ष 11 से 14 नवम्बर तक चलने वाले गधे मेले में नोटबंदी के कारण खरीद और बेचने वालों की संख्या कम है और बडें व्यापारी भी कम आये है।
हालांकि मेला परंपरानुसार लगा है और नोटबंदी के बाद भी खरीददारों ने हजार पांच सौ रूपये का बयाना भी दिया है, लेकिन व्यापार पिछले वर्षो की तुलना में कम ही हुआ है। इस कारण मेला अवधि दो दिन बढ सकती है। उन्होंने बताया कि वैसे विधित रुप से इस मेला का कल पूर्णिमा के मौके पर समापन हो जायेगा। उन्होंने बताया कि मेले में उत्साह कम के बावजूद बेचने वाले व्यापारी गधे को रोजाना नदी में स्नान कराकर अच्छी खातिरदारी भी कर रहे है।
मेला शादी ब्याही लगने वाले घोडे नहीं आये और जो घोडे आये है उनकी अधिकम कीमत 25000 से ज्यादा नहीं है, खच्चर की संख्या तो बहुत कम है और गधे कम से कम 9 हजार रुपयें का और अधिकतम 15 हजार रुपयें कीमत का मेला में आया है।
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