द्वितीय विश्व युद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम हमले के बाद युद्ध की समाप्ति के बाद भी बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। इस प्रकार के रेडिएशन को रोकने के लिए कोई विशिष्ट निवारक उपाय अभी भी नहीं हैं। इससे जुड़ी घटनाओं की बात करे तो पाते हैं-
- इंटरनेशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी का कहना है कि 1986 में चेर्नोबिल पावर प्लांट में होने वाले हादसे में करीब 4 हज़ार लोग मारे गए। मरने वालों की बड़ी संख्या, घटना के कई साल बाद रेडिएशन-जनित कैंसर के कारण थी।
- अध्ययन बताते हैं कि परमाणु युद्ध की स्थिति में विस्फोट के तत्काल परिणाम के बजाय रेडियो एक्टिव फॉलआउट कहीं ज़्यादा मौतों का कारण होगा।
अब परमाणु हमले के पीड़ितों को बचाया जा सकता है। इसके लिए चीन के रिसर्चर्स ने एक इलाज विकसित किया है। परमाणु हमले के अलावा यह ट्रीटमेंट कैंसर के इलाज के लिए भी फायदेमंद होगा।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, यह रिसर्च अभी चूहों पर ही की गई है मगर शोधकर्ता इसे लेकर आश्वस्त हैं। रिपोर्ट में सामने आया है कि ट्रीटमेंट रेडिएशन के संपर्क में आने वाले चूहों की जीवित रहने के समय की दर में काफी हद तक इज़ाफ़ा करता है।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस खोज से एक दिन कैंसर के इलाज को सुरक्षित बनाने में सफलता मिलेगी साथ ही यह इलाज परमाणु युद्ध की स्थिति में जीवित रहने की दर में भी सुधार कर सकती है।
परमाणु विस्फोटों या कैंसरग्रस्त ट्यूमर को हटाने के लिए रेडिएशन की हाई डोज दी जाती है। यह रेडियोथेरेपी शरीर के डीएनए को तोड़ने का काम करती है। जिससे बड़े पैमाने पर एपोप्टोसिस होता है, जो एक तरह से सेल की डेथ है।
गुआंगझोउ इंस्टीट्यूट्स ऑफ बायोमेडिसिन एंड हेल्थ के एसोसिएट रिसर्च फेलो सन यिरॉन्ग के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने पाया कि चूहों में स्टिंग नामक प्रोटीन नष्ट होने के बाद रेडिएशन के संपर्क में आने पर जीवित रहने की दर में वृद्धि हुई और यह 11 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई।
टीम ने पाया कि स्टिंग प्रोटीन एक नए सिग्नलिंग मार्ग को एक्टिव करता है, जिसके नतीजे में सेल डेथ का रेट बढ़ जाता है। सेल डेथ एंड डिफरेंशियल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में टीम का कहना था कि उन्होंने पाया कि सामान्य चूहों को पेट में अधिक गंभीर चोटें आईं, जबकि जिन चूहों के स्टिंग प्रोटीन को नष्ट कर दिया गया था, उनकी चोट कम गंभीर रही।
अध्ययन बताता है कि शरीर की प्रतिरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रोटीन को नष्ट करने से कैंसर या वायरस के प्रति रेडिएशन से होने वाले नुकसान से काफी हद तक बचा जा सकता है। साथ ही यह कैंसर रेडियोथेरेपी को अनुकूलित करने में भी सहायक हो सकता है।
कैंसर के मरीज अक्सर रेडियोथेरेपी की वजह से होने वाले गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल सिंड्रोम से मर जाते हैं। ऐसे में न्यूक्लियर रेडिएशन जेनेटिक डैमेज को ट्रिगर करके बड़ी संख्या में सेल डेथ की प्रक्रिया को पूरी करता है।