चंडीगढ़,08 दिसम्बर: पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा है कि भारत बंद के जरिये किसानों की एकजुटता ने खेती कानूनों को रद्द करने और बाद में कृषि सुधारों पर विस्तार में चर्चा करने की अहमीयत को दिखा दिया है।
उन्होंने आज यहां कहा कि केंद्र देशभर में प्रदर्शन कर रहे किसानों से नये सिरे से बातचीत करने उनकी मांग की ओर ध्यान नहीं दे रहा। उन्होंने कहा कि यदि मैं उनकी जगह होता तो मैं अपनी गलती मानने और कानूनों को वापस लेने के लिए एक मिनट न लगाता। केंद्र को आढ़तियों और मंडी व्यवस्था को ख़ारिज करने की बजाय मौजूदा प्रणाली को बरकरार रखना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने केन्द्र से एम.एस.पी. को कानूनी हक देने की मांग की । उन्होंने कहा कि एम.एस.पी. हमारा हक है। यदि एम.एस.पी. की गारंटी नहीं है और यदि कांग्रेस और भाजपा को छोडक़र अन्य राजसी पार्टी केंद्र में सत्ता पर आती है तो इस बात की कौन गारंटी लेगा कि किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा।
कैप्टन सिंह ने कहा कि ठंड की मार झेल रहे किसानों की बात क्यों नहीं सुनी जा रही। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह किया कि गरीब किसानों की चिंताओं के हल के लिए हर संभव प्रयास किया जायें। यही भारत की सुरक्षा के हित में है।
उन्होंने कहा कि बेशक इस समय मुल्क अब आत्मनिर्भर हो गया हो परन्तु भविष्य में अनाज की कमी की संभावना को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जब उनको ज़रूरत थी, हमें इस्तेमाल कर लिया और अब जब बाकी मुल्क गेहूँ और धान की फ़सल पैदा करने लग पड़ा है तो हमें अपने रहमो-कर्म पर छोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि मंडी प्रणाली का ख़ात्मा करके पंजाब को ग्रामीण विकास के लिए अति आवश्यक फंडों से वंचित किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को पंजाब के कृषि विकास को बट्टे खाते में न डालने की अपील करते हुये कहा कि आबादी के बढऩे से संकट आएगा और अगला साल, सूखे वाला साल रहने की भविष्यवाणी की जा रही है। मुल्क को हमारी ज़रूरत है और कोविड संकट के समय के दौरान हम यह सिद्ध कर चुके हैं जब गरीब का पेट भरने के लिए रोज़ाना 50 रेल गाड़ीयाँ अनाज की भेजते थे। उन्होंने भारत सरकार को अदूरदर्शी वाली पहुँच न अपनाने की भी अपील की। उन्होंने कहा कि भारत की खाद्य समस्याएँ ख़त्म नहीं होने जा रहीं। हम आपके लिए अन्न पैदा करते हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कृषि राज्य का विषय होने के कारण मोदी सरकार को कानून लाने से पहले सभी पक्षों के साथ चर्चा करनी चाहिए थी और इन कानूनों को संसद के द्वारा किसानों पर थोपना नहीं चाहिए था। यहाँ तक कि सभी राज्यों के किसानों के साथ भी सलाह की जा सकती थी क्योंकि हर राज्य की अपनी समस्याएँ हैं। केंद्र सरकार ने तो पंजाब के साथ सलाह तक नहीं की जिसको भारत के अन्न भंडार के तौर पर जाना जाता है।