निर्देशक अनंत महादेवन की फिल्म फुले को कुछ बदलावों के सीबीएफसी की तरफ से यू सर्टिफिकेट मिल चुका है। इन बदलावों में महार, मांग, पेशवाई जैसे शब्दों को हटाना शामिल था।
बताते चलें कि 11 अप्रैल को रिलीज होने वाली इस फिल्म का एक विशेष समुदाय द्वारा विरोध किया गया और इसकी रिलीज पर रोक लगा दी गई।
अब इस फिल्म के 25 अप्रैल को रिलीज होने की उम्मीद है। यह फिल्म समाज सुधारक ज्योतिराव गोविंदराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है।
प्रतीक गांधी की इस फिल्म पर महाराष्ट्र के ब्राह्मण समुदाय द्वारा आपत्ति जताये जाने के बाद इसकी रिलीज को कथित तौर पर पोस्टपोन कर दिया गया था।
इस मुद्दे पर फिल्म निर्माता अनुराग कश्यप ने सेंसर बोर्ड से नाराज़गी जताते हुए सवाल उठाया है कि फिल्म की रिलीज से पहले ही ब्राह्मण समुदाय को कैसे पता चला कि इसमें कुछ गलत है। उन्होंने जातिवाद को लेकर भी सरकार पर सवाल खड़े किए हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफार्म इंस्टाग्राम पर अनुराग ने इस मुद्दे को उठाते हुए लिखा- ‘मेरी जिंदगी का पहला नाटक ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले पर था। अगर जातिवाद नहीं होता तो ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले भी नहीं होते और उन्हें लड़ने की जरुरत नहीं पड़ती। अब इस समुदाय को इसे स्वीकार करने में क्या दिक्कत है या फिर ये अपने आपको अलग समझते हैं। अब मुझे समझाइए कि आखिर बेवकूफ कौन है।’
अनुराग ने कुछ अन्य फिल्मों के उदाहरण देते हुए लिखा- ‘पंजाब 95, धड़क 2, तीस समेत कई ऐसी फिल्में हैं जिन्हें विरोध का सामना करना पड़ा जबकि इन्होंने समाज की सच्चाई को दिखाया है।
अनुराग आगे लिखते हैं कि धड़क 2 की स्क्रीनिंग पर सेंसर बोर्ड ने कहा कि भारत में जाति व्यवस्था खत्म कर दी गई है और इसीलिए संतोष की रिलीज भी देश में नहीं होने दी और अब इन्हें फुले से भी दिक्कत है। अगर जातिवाद नहीं है तो फिर समस्या क्या है, आप हौ कौन इन फिल्मों का विरोध करने वाले।