अमेरिका पर कोराना वायरस का प्रकोप अब हर गुजरते दिन के साथ गहराता जा रहा है और इसकी चपेट में आने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है.
अमेरिका में 63,000 से भी ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और सिर्फ बुधवार को इससे होनेवाली मौतें 185 तक पहुंच गईं थीं जो एक रिकॉर्ड है. अब तक अमेरिका में 890 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं. लेकिन पिछले दशकों में हर गंभीर संकट के सामने एकजुट होकर खड़ा होनेवाला अमेरिका, इस वायरस के सामने बुरी तरह से विभाजित नजर आ रहा है. एक तबका है जो इसके खतरे को समझ रहा है, डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की सुन रहा है, वहीं दूसरा इसे नकारने वाली दलीलें पेश कर रहा है.
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के समर्थकों का एक बड़ा तबका इसे उनके राजनीतिक विरोधियों की साजिश और “फेक न्यूज” का नाम दे रहा है. दो हफ्ते पहले तक डॉनल्ड ट्रंप भी इसे नकार रहे थे, और अभी भी हर दिन व्हाइट हाउस के मंच से भले ही लोगों को सचेत रहने, मिलने-मिलाने से परहेज करने की सलाह देते हैं लेकिन ये याद कराना नहीं भूलते कि सड़क दुर्घटनाओं में इससे ज्यादा लोग मारे जाते हैं और इसका ये मतलब नहीं कि लोग गाड़ी चलाना बंद कर दें. बुधवार को उन्होंने अपने ट्विट में मीडिया पर आरोप लगाया कि वो इस समस्या को और बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है जिससे अर्थव्यवस्था ठप्प हो जाए और ट्रंप नवंबर में चुनाव हार जाएं.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आर्थिक मंदी किसी भी मौजूदा राष्ट्रपति के दोबारा से चुने जाने की राह में सबसे बड़ी अड़चन बनती है और ट्रंप ये अच्छी तरह समझते हैं. जाने-माने ट्रंप समर्थक और रूढ़िवादी रेडियो शो होस्ट ग्लेन बेक ने तो यहां तक कह दिया कि अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए यदि जान भी देनी पड़े तो उससे पीछे नहीं हटेंगे. जिस तरह से भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक अपील पर लोग ताली और थाली बजाने निकल पड़ते हैं, ट्रंप के समर्थक भी उनकी बातों को अटूट सत्य की तरह अपनाते हैं. यदि ट्रंप कह देते हैं कि कोरोना वायरस का इलाज मलेरिया की दवा से हो सकता है तो उनके समर्थक इस दलील को चुनौती देनेवाले डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने लगते हैं.