इलाहाबाद उच्च न्यायालय के चैप्टर 18 के नियम 18 का उपनियम 3a, जो कि उच्च न्यायालय में जमानत अर्जी की सुनवाई के पूर्व शासकीय अधिवक्ता को 10 दिन की नोटिस की बाध्यता सुनिश्चित करता था, मोहम्मद हैदर कॉरपोरेट अधिवक्ता के प्रयासों से संशोधित हो गया है, एवं उक्त अवधि अब घटा कर 10 दिनों के स्थान पर 2 दिन कर दी गई है।
यह नियम, जो कि नियमावली में 35 वर्षो से अधिक समय से था, के तत्क्रम में हज़ारों व्यक्तियों के जीवन के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा था। यह पुरातन नियम वर्तमान समय में , जबकि संचार के माध्यमों में क्रांति आ गई है, अपना आधार एवं औचित्य खो चुका था।

मोहम्मद हैदर
अपने विस्तृत प्रत्यावेदनों के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय का नियमित ध्यानाकर्षण ( अक्टूबर 2016 से ) कराने में सफलता प्राप्त न होने पर मोहम्मद हैदर द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय में अपने मित्र तलहा अब्दुल रहमान एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एवं वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के माध्यम से जनहित याचिका दाखिल की जिसपर सुनवाई करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने जुलाई 2018 में माननीय उच्च न्यायालय पर मोहम्मद हैदर के प्रत्यावेदन पर 6 सप्ताह में निर्णय लेने के आदेश जारी किए थे।
मोहम्मद हैदर के अनुसार अधिवक्तागण गौरव मेहरोत्रा(लखनऊ), नदीम मुर्तुज़ा(लखनऊ), मोहित सिंह(इलाहाबाद), चंदन शर्मा(इलाहाबाद) तथा सीनियर अधिवक्ता, महेश चंद्र ढींगरा , एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड, माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस शोध में न केवल सहायता की, बल्कि लगातार उत्साहवर्धन भी करते रहे।
यह संशोधन उन हज़ारों लोगों हो समर्पित है, जो बिना सुनवाई के न्यूनतम 10 दिनों तक न्यायिक अभिरक्षा में जेल में रहते थे। मौलिक अधिकारों के हनन का इससे बड़ा दृष्टांत कोई अन्य नहीं था।
मोहम्मद हैदर ने कहा कि मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने मुझे इतनी इच्छा शक्ति दी कि मैं इस ज्वलंत समस्या का निवारण , सफलतापूर्वक कर सकूं। यह विजय है हर उपेक्षित की, हर उस शोषित की, जो बिना सुनवाई के 10 दिनों तक जेल में रहने को विवश था।
मोहम्मद हैदर ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि ये संशोधन समर्पित है मेरे पिता स्वर्गीय सय्यद अली हैदर रिज़वी (पूर्व मुख्य स्थाई अधिवक्ता, मा0 उच्च न्यायालय लखनऊ खंडपीठ) को, जिन्होंने मुझे न केवल विधि जी शिक्षा दिलाई ,बल्कि लगातार मेरा मार्गदर्शन करते रहे और मुझको लोकहित के कार्य करने की प्रेरणा देते रहे।