कार्बन उत्सर्जन और पर्यावरण से जुड़ा एक अध्ययन बताता है कि वैश्विक तापमान में दो-तिहाई वृद्धि के लिए दुनिया के शीर्ष दस फीसद अमीर जिम्मेदार हैं। आम आदमी से 26 गुना अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाला यह वर्ग अपनी जीवनशैली और निवेश की बदौलत हीटवेव, सूखे और तापमान वृद्धि के लिए कहीं अधिक उत्तरदायी हैं।
नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित इस अध्ययन के हवाले से शोधकर्ताओं द्वारा आय आधारित कार्बन उत्सर्जन का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि जलवायु संकट से निपटने के लिए केवल तकनीकी समाधान पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए सामाजिक और आर्थिक संरचना में भी बदलाव की जरूरत है।
अध्ययन बताता है कि वैश्विक तापमान में दो-तिहाई वृद्धि के लिए दुनिया के सबसे अमीर दस फीसद लोगों की भागीदारी के नतीजे में सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को भी उजागर किया है।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन केवल पर्यावरणीय संकट नहीं है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक से अब तक बढ़ी गर्मी, हीटवेव और सूखे जैसी चरम जलवायु स्थितियों के पीछे इन उच्च आय वर्गों की जीवनशैली और निवेश पैटर्न एक बड़ा कारण रहा है।
अध्ययन के मुताबिक़, अमरीका, फ्रांस, जर्मनी, चीन, डेनमार्क न्यूजीलैंड, सिंगापुर और हांगकांग जैसे देशों में सबसे अमीर लोगों द्वारा उत्सर्जन ने ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाया है। इसका प्रभाव उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों जैसे अमेजन, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका पर हुआ है जो कि ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम उत्सर्जन करने वाले क्षेत्र रहे हैं। शोध अमेजन वर्षावनों में सूखे की घटनों का उदाहरण देते हुए स्पष्ट करता है कि यहाँ यह समस्या 17 गुना तक बढ़ गई हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अमीर वर्ग की लक्जरी लाइफ से जुड़ी दिनचर्या वैश्विक उत्सर्जन को तेज़ रफ़्तार से बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार हैं। रिपोर्ट कहती है कि अगर पूरी दुनिया ने सबसे गरीब फीस लोगों की तरह जीवनशैली अपनाई होती, तो तापमान में मौजूदा वृद्धि लगभग नगण्य होती।
समस्या के समाधान के लिए लक्षित नीति निर्माण की बात की गई है। इसमें कार्बन टैक्स, प्रगतिशील कर प्रणाली, और पोल्यूटर-पे सिद्धांत से जलवायु कार्रवाई में प्रभावशाली बदलाव ला सकते हैं।
पीपीपी यानी पोल्यूटर-पे सिद्धांत एक पर्यावरणीय सिद्धांत है जिसके अनुसार प्रदुषण फैलाने वाले व्यक्ति, उद्योग या संस्था से ही उस प्रदूषण की सफाई और उससे होने वाले नुकसान की भरपाई का खर्च वसूला जाता है।