अब हर वर्ष 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा। यह जानकारी केंद्र सरकार की ओर से लिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय के बाद आई है।
27 मार्च 2025 को जारी गजट अधिसूचना के माध्यम से इस बदलाव की जानकारी दी गई है। दरअसल अभी तक आयुर्वेद दिवस की कोई निश्चित तिथि नहीं थी।
तिथि निर्धारण से इसे एक वैज्ञानिक, सबूत-आधारित और सतत स्वास्थ्य प्रणाली के रूप में मज़बूती मिलेगी, इससे रोगों की रोकथाम और संपूर्ण कल्याण में महत्वपूर्ण सहयोग मिल सकेगा।
बताते चलें कि अभी तक आयुर्वेद दिवस धनतेरस के दिन मनाया जाता था, जो हर वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार बदलता रहता है। इसके चलते अक्टूबर या नवंबर में इसे मनाया जाता रहा है।
अब आयुर्वेद दिवस की तिथि निश्चित होने के बाद इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाना आसान हो सकेगा और इस दिन से संबंधित कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाना भी सरल होगा।
आयुर्वेद दिवस मंत्रालय को जब पता चला कि आने वाले दशक में धनतेरस की तारीख 15 अक्टूबर से 12 नवंबर के बीच अलग-अलग रहेगी, जिससे और भी अस्थिरता होने की सम्भावना है। ऐसे में समस्या के समाधान के लिए आयुष मंत्रालय ने एक समिति गठित की।
इस समिति ने विमर्श के बाद चार संभावित तारीखों का सुझाव दिया। इनमें से 23 सितंबर को अंतिम रूप दिया गया।
शरद विषुव (Autumnal Equinox) के साथ मेल खा तिथि की विशेषता यह है कि इस दिन को दिन और रात लगभग बराबर होते हैं। समानता का यह संतुलन आयुर्वेद के मूल सिद्धांत से मेल खाता है जो शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन पर आधारित है।
इस खगोलीय घटना को प्राकृतिक संतुलन का प्रतीक माना जाता है। प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहना ही आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य भी है।
आयुष मंत्रालय द्वारा स्वास्थ्य विशेषज्ञों, शैक्षणिक संस्थाओं, आम नागरिकों और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों से अपील की गई है कि वे 23 सितंबर को अपनाएं और आयुर्वेद दिवस को उत्साह के साथ मनाएं।
मंत्रालय का मानना है कि यह बदलाव के बाद आयुर्वेद को वैश्विक स्वास्थ्य विमर्श में और अधिक मजबूती से स्थापित करने में सहायता मिलेगी।