जस्टिस बी आर गवई आज यानी बुधवार को देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। वे बौद्ध न्यायाधीश होंगे जो इस पद तक पहुंचे हैं। उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक रहेगा। सीजेआई के रूप में बी आर गवई के नाम की सिफारिश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने की थी।
इस नियुक्ति को मंजूरी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) के तहत राष्ट्रपति द्वारा दी गई। इसके पश्चात कानून और न्याय मंत्रालय की ओर से इसकी अधिसूचना जारी की गई।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु बी आर गवई को शपथ दिलाएंगी। वे वर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का स्थान लेंगे, जिनका कार्यकाल अब समाप्त हो रहा है।
जस्टिस गवई इस समय सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। उन्हें 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
संवैधानिक, प्रशासनिक, दीवानी, आपराधिक विवादों की मध्यस्थता करने वाले जस्टिस गवई पिछले छह वर्षों में तक़रीबन 700 पीठों का हिस्सा रहे हैं। इसके अलावा उनकी मध्यस्थता में वाणिज्यिक, विद्युत, शिक्षा और पर्यावरण जैसे कई मामलों की सुनवाई हुई है।
इस दौरान जस्टिस गवई ने करीब 300 फैसले लिखे हैं, जिनमें संविधान पीठों के महत्वपूर्ण निर्णय भी शामिल हैं। इस फैसलों में कानून के राज और मौलिक, मानव तथा कानूनी अधिकारों की रक्षा को प्रमुखता दी गई है।
जस्टिस गवई दलित समुदाय से देश के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले दूसरे व्यक्ति होंगे। साल 2007 में पूर्व सीजेआई केजी बालाकृष्णन पहले दलित सीजेआई बने थे और उन्होंने 3 साल तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की ज़िम्मेदारी निभाई।
12 नवंबर 2005 को बॉम्बे हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश नियुक्त होने वाले जस्टिस गवई ने अपने कार्यकाल में मुंबई के प्रधान पीठ के अलावा नागपुर, औरंगाबाद और पणजी पीठों पर भी महत्वपूर्ण न्यायिक ज़िम्मेदारी निभाई है।
जस्टिस वीआर गवई के मुख्य फैसलों में बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ तोड़फोड़, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखना तथा डिमोनेटाइजेशन को जारी रखना है। इसके अलावा अनुसूचित जाति कोटे में उप-वर्गीकरण को बरकरार रखना, शराब नीति में के कविता को जमानत देना, तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी की दो बार आलोचना करना शामिल हैं।
बुलडोजर न्याय के खिलाफ फैसला लिखते समय, उन्होंने आश्रय के अधिकार के महत्व पर जोर दिया था। मनमाने ढंग से तोड़फोड़ की निंदा करते हुए उनका कहना था कि इस तरह की कार्रवाई प्राकृतिक न्याय और कानून के शासन के सिद्धांतों के खिलाफ है। अपने फैसले में उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि कार्यपालिका, जज, जूरी और जल्लाद की भूमिका नहीं निभा सकती।