जलवायु परिवर्तन पर निगाह रखने वाली संस्था कॉपरनिकस ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2024 में कार्बन उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर रहा। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर ग्लोबल वॉर्मिंग को नियंत्रित करने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में पृथ्वी पर महाविनाशकारी आपदाओं की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हो सकती है।
बढ़ते तामपान और जलवायु परिवर्तन को लेकर होने वाले अध्ययन बताते हैं कि जनवरी से नवंबर तक का औसत वैश्विक तापमान प्री-इंडस्ट्रियल एरा (1850-1900) की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे पहले 2023 को सबसे गर्म साल के तौर पर दर्ज किया गया।
कॉपरनिकस के जलवायु विशेषज्ञ जुलियन निकोलस का कहना है कि जिस तरह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, वो दिन दूर नहीं जब धरती तंदूर की तरह गर्म हो जाएगी।
वैज्ञानिकों के मुताबिक़, अल नीनो और ला नीना जैसे जलवायु पैटर्न तापमान को प्रभावित करते हैं। इंपीरियल कॉलेज लंदन के वैज्ञानिक फ्रेडरिक ओट्टो इस संबंध में कहते हैं कि अगले साल अल नीनो की जगह ला नीना के प्रभाव से तापमान में थोड़ी गिरावट आ सकती है, मगर उन्होंने यह भी कहा कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि स्थिति सामान्य होगी। उनके अनुसार आने वाले वर्षों में में हीटवेव, सूखा, जंगली आग और साइक्लोन जैसी आपदाओं का प्रकोप बढ़ सकता है।
अपने नए अध्ययन के हवाले से कॉपरनिकस के जलवायु विशेषज्ञ जुलियन निकोलस ने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से आगाह किया है। उन्होंने बताया कि रिकॉर्ड दर्शाता है कि वर्ष 2024 का नवंबर में भी तापमान सामान्य से काफी अधिक रहा।
कॉपरनिकस के जलवायु विशेषज्ञ जुलियन निकोलस का कहना है कि आने वाले समय में ये हालात बिगड़ सकते हैं। निकोलस के अनुसार, जीवाश्म ईंधन के बढ़ते प्रयोग और कार्बन उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिंक को अधिक बढ़ावा मिलता हैं।
ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते प्रभाव से दुनिया एक संकट की तरफ बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के नतीजे में दुनिया के सभी देश बड़े नुकसान उठा रहे हैं। इसने मानव जीवन को बुरी तरह प्रभावित करते हुए संकट को बढ़ाया है। ऐसे में महाविनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या भी बढ़ी है। इस सब समस्याओं के साथ मौजूदा वर्ष धरती के अब तक के ज्ञात इतिहास का सबसे अधिक गर्म वर्ष बन गया है।
जानकारों का कहना है कि ऐसे में जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन को शून्य करना बेहद जरूरी है। उन्होंने याद दिलाया कि कई देशों ने इसे कम करने का वादा किया था।