एक नए अध्ययन में पाया गया है कि चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में हम जो कुछ भी जानते हैं, वह गलत हो सकता है।
जब से मनुष्य पहली बार चंद्रमा पर उतरा, तब से वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी और एक अन्य चट्टानी ग्रह के बीच हिंसक टक्कर के परिणामस्वरूप चंद्रमा अस्तित्व में आया।
लगभग 40 वर्षों तक वैज्ञानिकों का मानना था कि एक बड़े टकराव से चंद्रमा का निर्माण हुआ। इस सिद्धांत ने सुझाव दिया कि पृथ्वी के मलबे ने हमारे उपग्रह का निर्माण किया। हालाँकि, एक हालिया अध्ययन एक अलग विचार प्रस्तुत करता है।
एक हालिया अध्ययन के मुताबिक़ शोधकर्ताओं को लगता है कि चंद्रमा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण द्वारा कब्जा किया गया एक बाहरी पिंड हो सकता है। जबकि बीते 40 वर्षों से वैज्ञानिकों का अनुमान था कि एक विशाल टक्कर से चंद्रमा का निर्माण हुआ।
द प्लैनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित एक नए पेपर के अनुसार, हो सकता है कि यह चंद्रमा किसी अन्य अंतरिक्ष वस्तु के करीब से गुजरते समय अपनी कक्षा से हट गया हो।
यह टकराव सिद्धांत (collision theory), जिसे ‘विशाल प्रभाव परिकल्पना’ (giant impact hypothesis) कहा जाता है, से संकेत मिलता है कि चंद्रमा का निर्माण प्रारंभिक पृथ्वी और मंगल जैसे प्रोटोप्लैनेट थिया के बीच हुई भारी टक्कर के मलबे से हुआ था।
1969 और 1972 के बीच अंतरिक्ष यात्रियों ने 800 पाउंड से अधिक चंद्र चट्टान और मिट्टी एकत्र की। विश्लेषण से पता चला कि ये सामग्री पृथ्वी की संरचना के साथ समानताएं साझा करती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारा चंद्रमा सौर मंडल के जन्म के 60 मिलियन वर्ष बाद बना था।
1984 में कोना सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने इसके विपरीत निष्कर्ष निकाला। उन्होंने तर्क दिया कि चंद्रमा एक युवा पृथ्वी के साथ टकराव का परिणाम था।
हालाँकि, दो पेन स्टेट शोधकर्ता अब इस कथन को चुनौती देते हैं। डैरेन विलियम्स और माइकल ज़ुगर ने अपने निष्कर्ष द प्लैनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित किए।