असम सरकार ने मुस्लिम विवाह और तलाक कानून को निरस्त कर दिया है। इस फैसले को यूनिफार्म सिविल कोड की दिशा में बड़ा कदम बताते हुए असम सरकार ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1930 को निरस्त कर दिया है।
शुक्रवार रात मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता में राज्य कैबिनेट की बैठक के दौरान यह फैसला लिया गया। कैबिनेट मंत्री जयंत मल्लबारुआ ने इस फैसले को यूसीसी की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने 23 फ़रवरी को आधी रात के बाद एक सोशल मीडिया पोस्ट साझा करते हुए बताया- “23.2.2024 को, असम कैबिनेट ने सदियों पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। इस अधिनियम में विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल थे, भले ही दूल्हा और दुल्हन 18 और 21 वर्ष की कानूनी उम्र तक नहीं पहुंचे हों, जैसा कि कानून में जरूरी है। यह कदम असम में बाल विवाह पर रोक लगाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने ट्वीट किया, "23.2.2024 को, असम कैबिनेट ने सदियों पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। इस अधिनियम में विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल थे। यह कदम असम में बाल विवाह पर… pic.twitter.com/bdNzIJudOW
— ANI_HindiNews (@AHindinews) February 23, 2024
बाल विवाह तथा बहुविवाह पर रोक लगाने के लिए असम सरकार ने मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण कानून 1930 को निरस्त किये जाने की बात कही है। इस फैसले के मुताबिक़ अब मुस्लिम विवाह और तलाक संबंधित सभी मामले विशेष विवाह अधिनियम द्वारा शासित किये जाएंगे।
2011 की जनगणना के आधार पर, असम की आबादी में एक तिहाई मुस्लिम जनता है। प्रदेश की कुल 3.12 करोड़ की आबादी में 34 फीसद मुसलमानों की संख्या है। आबादी के हिसाब से असम में मुस्लिम नागरिकों की संख्या 1 करोड़ 6 लाख है।
बताते चलें कि उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता कानून लागू करने वाला पहला राज्य बनने के तीन सप्ताह बाद असम सरकार द्वारा यह फैसला लिया गया है।
कैबिनेट मंत्री जयंत मल्लबारुआ का कहना है कि आगे चलकर मुस्लिम विवाह और तलाक से संबंधित सभी मामले विशेष विवाह अधिनियम द्वारा शासित होंगे।
उन्होंने प्रेस से बात करते हुए कहा कि निरस्त अधिनियम के तहत कार्यरत 94 मुस्लिम रजिस्ट्रारों को भी उनके पदों से मुक्त कर दिया जाएगा और उन्हें 2 लाख रुपये का एकमुश्त भुगतान दिया जाएगा।