गुरुवार को घोषित किए गए पद्मश्री पुरस्कारों में देश के विभिन्न प्रदेशों के 34 हस्तियों के नाम शामिल हैं। समाज में बदलाव लाने के लिए इन लोगों ने कठिन परिस्थितिओं का सामना किया और तमाम दुश्वारियों के बावजूद अपने कामों में जुटे रहे। आइये एक नज़र डालते हैं इन महान लोगों की ज़िंदगी पर।
1. पार्बती बरुआ ( असम, सामाज सेवा, आयु- 67 साल)
भारत की पहली महिला हाथी महावत को सामाजिक कार्य यानी पशु कल्याण के क्षेत्र में पद्म श्री दिया जा रहा है। इन्होने रूढ़िवादिता से उबर कर 14 साल की उम्र में जंगली हाथियों को साधना शुरू किया था।
2. जागेश्वर यादव (छत्तीसगढ़, सामाजिक कार्य, आयु- 67 साल)-
जशपुर के आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता जागेश्वर यादव ने हाशिये पर पड़े बिरहोर पहाड़ी कोरवा लोगों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
3. चामी मुर्मू (झारखंड, सामाजिक कार्य, आयु- 52 साल)-
सरायकेला खरसावां की आदिवासी पर्यावरणविद् और महिला सशक्तिकरण चैंपियन चामी मुर्मू को सामाजिक कार्य (पर्यावरण वनीकरण) के क्षेत्र में पद्म श्री दिया जा रहा है।
4. गुरविंदर सिंह (हरियाणा, सामाजिक कार्य, आयु – 53 साल)-
बेघर, निराश्रितों, महिलाओं, अनाथों और दिव्यांगजनों की भलाई के लिए काम करने वाले सिरसा के दिव्यांग सामाजिक कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह को सामाजिक कार्य (दिव्यांगजन) के क्षेत्र में पद्मश्री दिया जा रहा है।
5. सत्यनारायण बेलेरी (केरल, अन्य, आयु -50 साल)-
सरगोड के चावल किसान सत्यनारायण बेलेरी को कृषि अनाज चावल के क्षेत्र में पद्म श्री दिया जा रहा है। उन्होंने 650 से अधिक पारंपरिक चावल किस्मों को संरक्षित करके धान की फसलों के संरक्षक की भूमिका ऐडा की है।
6. दुखू माझी (पश्चिम बंगाल, सामाजिक कार्य, आयु- 78 साल)-
पुरुलिया के सिंदरी गांव के आदिवासी पर्यावरणविद् दुखू माझी को पर्यावरण वनीकरण के क्षेत्र में पद्मश्री दिया जा रहा है। दुखू माझी ने हर दिन अपनी साइकिल पर नए गंतव्यों की यात्रा करते हुए बंजर भूमि पर 5,000 से अधिक बरगद, आम और ब्लैकबेरी के पेड़ लगाए हैं।
7. के चेल्लम्मल (अंडमान व निकोबार, अन्य, आयु- 69 साल)-
दक्षिण अंडमान के जैविक किसान के. चेल्लम्मल (नारियल अम्मा) को कृषि जैविक के क्षेत्र में पद्मश्रीदिया जा रहा है। उन्होंने 10 एकड़ का जैविक फार्म सफलतापूर्वक विकसित किया।
8. संगथंकिमा (मिजोरम, सामाजिक कार्य, आयु- 63 साल)-
मिजोरम के सबसे बड़े अनाथालय ‘थुतक नुनपुइटु टीम’ चलाने वाले आइजोल के एक सामाजिक कार्यकर्ता संगथंकिमा को सामाजिक कार्य (बाल के लिए) के क्षेत्र में पद्मश्री दिया जाएगा।
9. हेमचंद मांझी (छत्तीसगढ़, चिकित्सा, आयु- 70 साल)-
नारायणपुर के पारंपरिक औषधीय चिकित्सक हेमचंद मांझी को आयुष पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में पद्मश्री दिया जाएगा। उन्होंने 15 साल की उम्र में ये काम शुरू किया और पांच दशकों से अधिक समय से ग्रामीणों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर रहे हैं।
10. यानुंग जमोह लेगो (अरुणाचल प्रदेश, अन्य, आयु- 58 साल)- एसएचजी को प्रशिक्षित करने वाले यानुंग जमोह लेगो पूर्वी सियांग स्थित हर्बल चिकित्सा विशेषज्ञ हैं। उन्होंने 10,000 से अधिक रोगियों को चिकित्सा देखभाल की है। एक लाख व्यक्तियों को औषधीय जड़ी-बूटियों के बारे में शिक्षित किया है। उन्हें अन्य (कृषि औषधीय पौधों) के क्षेत्र में पद्मश्री के लिए चुना गया है।
11. सोमन्ना (कर्नाटक, सामाजिक कार्य, आयु- 66 साल)-
सामाजिक कार्य (आदिवासी पीवीटीजी) के क्षेत्र में पद्मश्री के लिए मैसूरु के एक जनजातीय कल्याण कार्यकर्ता सोमन्ना का नाम शामिल है। जेनु कुरुबा जनजाति के उत्थान के लिए उन्होंने चार दशकों से अधिक समय समर्पण किया है।
12. सर्बेस्वर बासुमतारी (असम, कृषि, आयु- 61 साल)-
असम के सर्बेस्वर बासुमतारी को खेती में योगदान के लिए पद्मश्री चुना गया है। इन्होंने मिक्स एकीकृत खेती करते हुए नारियल, संतरा, धान, मक्का और लीची की कई वेराइटी डेवलप की है। कभी दिहाड़ी मजदूरी करने वाले गुमनाम सर्बेस्वर आज हजारों किसानों की प्रेरणा है।
13. प्रेमा धनराज ( कर्नाटक, चिकित्सा, आयु- 72 साल)-
प्रेमा धनराज प्लास्टिक रिकंस्ट्रक्टिव सर्जन सामाजिक कार्यकर्ता हैं। जले हुए पीड़ितों की देखभाल और पुनर्वास के लिए काम करती हैं। इन्हे मेडिसिन (स्वदेशी बर्न्स) के क्षेत्र में पद्मश्री दिया जाएगा।
14. उदय विश्वनाथ देशपांडे (महाराष्ट्र, खेल, आयु – 70 साल)
मलखम्ब की दुनिया में पितामह के नाम से मशहूर उदय विश्वनाथ देशपांडे को देश-दुनिया में मल्लखंभ का ध्वजवाहक मानने के साथ वैश्विक मानचित्र पर खेल को लाने का श्रेय दिया जाता है। देशपांडे ने 50 देशों के 5,000 से अधिक लोगों को व्यक्तिगत रूप से प्रशिक्षित किया।
15. वाईएम इटालिया (गुजरात, चिकित्सा, आयु- 72 साल)-
सिकल सेल के इलाज में उल्लेखनीय योगदान देने वाले मशहूर माइक्रोबायोलॉजिस्ट याज्दी मानेकशा इटालिया का नाम शामिल है। सिकल सेल अनीमिया कंट्रोल प्रोग्राम (SCACP) में इन्होंने अहम भूमिका निभाई है। आईसीएमआर के करीबी सहयोग में काम करने वाले इटालिया ने दो लाख आदिवासी लोगों की जांच कराई है। गुजरात में 95 लाख लोगों की जांच की गई है।
16. शांति देवी पासवान और शिवन पासवान (बिहार, कला, युगल)-
दुसाध समुदाय के पति-पत्नी तथा सामजिक विषमताओं का सामने करते हुए गोदना पेंटिंग में वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई। इन्होंने अमेंरिका, जापान, हांगकांग सहित कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। इसके अलावा शांति देवी और शिवन पासवान ने 20 हजार से अधिक महिलाओं को कला की इस विधा में प्रशिक्षित किया। कभी शांति देवी को उनकी जाति की वजह से उनके गांव में पीने का पानी लेने से भी रोक दिया गया था। उन्होंने भारत में आयोजित जी-20 जैसे वैश्विक मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। तमाम आर्थिक तंगी के बावजूद शिवन पासवान ने अपनी कला को न सिर्फ जारी, बल्कि प्रशिक्षण के माध्य से उसे आगे बढ़ाया।
17. रतन कहार (पश्चिम बंगाल, कला- लोक गायिकी, आयु- 88 साल)-
पश्चिम बंगाल के बीरभूम में भाडू लोक गायिकी की दुनिया में मशहूर रतन कहार जात्रा फोक थियेटर में सराहनीय भूमिका के लिए जाने जाते हैं। टुसू, झूमर और अलकाब गाते हैं।
18. अशोक कुमार बिस्वा, टिकुली के भीष्म पितामह (बिहार, कला, आयु- 67 साल)-
टिकुली पेंटर बिस्वा पिछले पांच दशक से मौर्य युग की इस कला से जुड़े हैं। इन्हें इस कला के पुनरुद्धार का श्रेय दिया जाता है। बिस्वा ने हजारों डिजाइन तैयार किए और असंख्य टिकुली पेंटिंग का निर्यात किया। निशुल्क प्रशिक्षण देकर बिस्वा ने आठ हजार से अधिक कलाकारों को प्रशिक्षित किया।
19. बालाकृष्णन एसपी विटील (केरल, कला, नृत्य, आयु- 79 साल)-
कल्लुवाझी कथकली नृतक के रूप में बालकृष्ण सदनम का ने जीवन के छह दशक दिए हैं। इन्होंने वैश्विक ख्याति अर्जित की और भारतीय संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाया। आपने 25 से अधिक देशों में प्रदर्शन भी किया है।
20. उमा महेश्वरी डी (आंध्र प्रदेश, कला, कथावाचन; हरिकथा, आयु- 63 साल)-
पहली महिला हरिकथा गायिका होने के साथ संस्कृत भाषा में पाठ करने वाली उमा कई रागों में कथाएं सुनाती हैं। भैरवी, शुभपंतुवरलि, केदारम और कल्याणी जैसे रागों में हरिकथा को लोकप्रिय बनाने वाली उमा के योगदान ने कई युवाओं को प्रोत्साहित किया है।
21.गोपीनाथ स्वैन (उड़िया, कला, वोकल, भजन, आयु 105 साल)-
उड़िया, कला, वोकल और भजन के क्षेत्र में योगदान को देखते हुए इन्हे पद्मश्री सम्मान हेतु चुना गया है।
22. स्मृति रेखा चकमा (त्रिपुरा, टेक्सटाइल कला, आयु- 63 साल)-
त्रिपुरा की इस महिला को चकमा लुइनलूम शॉल बुनने में महारत हासिल है। इकोफ्रेंडली शॉल बनाती हैं। सामाजिक सांस्कृतिक संगठन उजेइया जाढा (Ujeia Jadha) बनाया है। इसमें ग्रामीण महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है।
23. ओम प्रकाश शर्मा (मध्य प्रदेश, कला, थियेटर, आयु- 85 साल)-
अपने पिता से उस्ताद कालूराम माच अखाड़े के तहत प्रक्षिशण लिया। माच थिएटर कलाकार ने मालवा क्षेत्र के इस 200 साल पुराने पारंपरिक नृत्य नाटक को बढ़ावा देने के लिए अपने जीवन के सात दशक समर्पित किए हैं। माच थिएटर प्रस्तुतियों के लिए स्क्रिप्ट लिखी और संस्कृत नाटकों को माच शैली में दोबारा तैयार किया।
24. नारायण ईपी (केरल, नृत्य, आयु- 67 साल)-
थय्यम की परंपरा को दोबारा जिंदा करने का श्रेय दिया जाता है। इन्होंने थय्यम लोक नर्तक के रूप में अलग मुकाम पाया है।
25. भगबत पधान (ओडिशा, लोक नृत्य, आयु- 85 साल)-
इन्होंने ‘महादेव का नृत्य’ कला को लोकप्रिय बनाया। 1960 के दशक में आर्थिक चुनौती का सामना किया और लोक नृत्य के अपने जुनून को कायम रखा। बरगढ़ के सबदा नृत्य लोक नृत्य के प्रतिपादक, जिन्होंने नृत्य शैली को मंदिरों से परे ले लिया है। अपने जीवन के पांच दशक से अधिक समय नृत्य के संरक्षण के लिए समर्पित किया।
26. सनातन रूद्र पाल (पश्चिम बंगाल, मूर्तिकला, आयु- 68 साल)-
पारंपरिक कला रूप को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के पांच दशकों से अधिक के अनुभव वाले मूर्तिकार सनातन रुद्र पाल साबेकी दुर्गा मूर्तियों को तैयार करने में माहिर हैं। इन्हे अपनी मूर्तियों के लिए यूनेस्को से मान्यता मिली। इसके अलावा 1500 से अधिक लोगों के रोजगार का माध्यम बने।
27. बदरप्पन एम( तमिलनाडु, लोक नृत्य, आयु- 50 वर्ष)-कोयंबटूर के वल्ली ओयिल कुम्मी लोक नृत्य के प्रतिपादक – गीत और नृत्य प्रदर्शन का एक मिश्रित रूप, जो देवताओं ‘मुरुगन’ और ‘वल्ली’ की कहानियों को दर्शाता है। मुख्य रूप से पुरुष प्रधान कला होने के बावजूद बदरप्पन महिला सशक्तीकरण में विश्वास करते हैं और इस तरह उन्होंने महिला कलाकारों को प्रशिक्षित किया।
28. जॉर्डन लेप्चा ( सिक्किम, शिल्पकला, आयु- 87 साल)-
एक सीमांत किसान और बढ़ई होने के साथ मंगन के बांस शिल्पकार जॉर्डन लेप्चा, जो लेप्चा जनजाति की सांस्कृतिक विरासत को संजो रहे हैं। पिछले 25 वर्षों से पारंपरिक लेप्चा टोपी बुनाई और बांस शिल्प की प्राचीन कला को संरक्षित किया है। साथ ही उन्होंने 150 से अधिक युवाओं को इस कला की जानकारी प्रदान की।
29. मचिहान सासा (मणिपुर, शिल्पकला, आयु -73 वर्ष)-
उखरुल के लोंगपी कुम्हार जिन्होंने इस प्राचीन मणिपुरी को संरक्षित करने के लिए पांच दशक समर्पित किए। पारंपरिक मिट्टी के बर्तन जिनकी जड़ें नवपाषाण काल (10,000 ईसा पूर्व) से जुड़ी हैं। खाना पकाने के बर्तन, चाय के कप आदि जैसे लोंगपी मिट्टी के बर्तनों के उत्पादों की किस्मों का निर्माण, विपणन और प्रदर्शन – मणिपुरी लोक कला से प्रेरित नए डिजाइनों का समावेश किया। उन्होंने 300 से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया।
30. गद्दाम सम्मैय्या (तेलंगाना, लोकनृत्य, आयु -67 साल)-
जनगांव के प्रख्यात चिंदु यक्षगानम थिएटर कलाकार पांच दशकों से अधिक समय से 19,000 से अधिक शो में इस समृद्ध विरासत कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले गद्दाम सम्मैय्या कृषि मजदूर के रूप में काम किया। उन्होंने यह कला अपने माता-पिता से सीखी थी।
31. जानकीलाल (राजस्थान, लोक रंगमंच, आयु -81 साल)-
भीलवाड़ा के बहरूपिया कलाकार जानकीलाल, लुप्त होती कला शैली में महारत हासिल कर रहे हैं और छह दशकों से अधिक समय से वैश्विक दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रहे हैं। राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में इस स्थानीय कला को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया।
32. दसारी कोंडप्पा ( तेलंगाना, संगीत कला, आयु-63 वर्ष)-
नारायणपेट के दामरागिड्डा गांव के तीसरी पीढ़ी के बुर्रा वीणा वादक के रूप में जाने जाते हैं। बुर्रा वीणा को विलुप्त होने से बचाया है। बुर्रा वीणा बांस, लौकी के खोल और धातु के तारों का उपयोग करके बनाया गया एक स्वदेशी तार वाला वाद्य यंत्र है। तेलुगु, कन्नड़ में ‘तत्वलु’ सामाजिक-धार्मिक नैतिक रचनाएं और आध्यात्मिक दार्शनिक प्रस्तुतियां गाते हैं।
33. बाबू राम यादव(उत्तर प्रदेश, शिल्पकाल, आयु-74 साल)-
पारंपरिक शिल्पकला तकनीकों का उपयोग करके जटिल पीतल की कलाकृतियां बनाने में छह दशकों से अधिक के अनुभव वाले पीतल मरोरी शिल्पकार हैं। उन्होंने आर्टिसन लाइट की स्थापना की, जिसका उद्देश्य कारीगर समुदायों को आर्थिक कल्याण और सहायता प्रदान करना है।
34. नेपाल चंद्र सूत्रधार, (पश्चिम बंगाल, कला, आयु- 82 साल)-
आठ साल की आयु में पिता से मास्क बनाना सीखा। छऊ डांस के लिए मास्क बनाने वाले नेपाल चंद्र सूत्रधार तीसरी पीढ़ी में इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। 70 से अधिक डांस समूहों को इन्होंने प्रशिक्षित किया है। नवंबर 2023 में इनके निधन के बाद इनके परिजनों को मरणोपरांत यह सम्मान दिया जाएगा।